Sunday, January 2, 2011

मकर लग्न में गुरु की दशा/अन्तर्दशा

मकर लग्न में गुरु तृतीय और द्वादश भाव का स्वामी होता है! दोनों ही स्थान पापी होते है! खासकर दशा/अन्तर्दशा के दौरान इन दो भावों के अधिपति कभी भी शुभ फल नहीं देते! दशा चक्र नियम ग्रहों की शुभता/अशुभता से बिलकुल भिन्न है! कोई भी ग्रह कितना ही शुभ क्यों न हो यदि वह अशुभ भावों का स्वामी है तो दशा काल में अशुभ फल ही देगा! अशुभ फल उस भावानुसार होगा जिसका की वह स्वामी है! उदहारण स्वरुप गुरु ग्रह को लें! सौरमंडल में यह सर्वाधिक शुभ ग्रह है! इसकी शुभता का आलम यह है की नीच या अन्यान्य तरह से परम अशुभ क्यों न सिद्ध हो रहा हो इसकी दृष्टि हमेशा शुभ ही रहती है! परन्तु अधिपत्य की स्थिति के कारन यह कुछ मामलों में दशा/अन्तर्दशा के दौरान परम अशुभ फल देता है! मकर लग्न में अपनी दशा/अन्तर्दशा में कैसा फल देगा ?

तीसरे भाव से निज, नजदीकी व्यक्ति,बाजू,शक्ति,पराक्रम,छोटे भाई-बहन,मित्र,पडोसी,छोटी यात्रा,कन्धा,साँस की नली,मेहनत, दादी,चचेरा भाई,धैर्य,हिम्मत,निडरता,नौकर-चाकर,आयु,धर्म में दृढ़ता आदि का विचार किया जाता है!

द्वादश भाव से व्यय(अनावश्यक),शारीर हानि(मोक्ष),खर्च की अधिकता,जप,वीर्य विसर्जन,दाहिनानेत्र ,त्याग,मामी,पाँव,जेल,
नींद,भोग,बुआ,धार्मिक यात्रा,मानहानि,राजदंड,शयन सुख में कमी,आत्महत्या,गुप्त शत्रु,राजसम्मान आदि का विचार किया जाता है!

उपरोक्त सभी मामलों में गुरु का फल बुरा ही सिद्ध होगा! व्यवसाय में बदलाव या नए व्यवसाय धूमधाम से आरंभ होगा परन्तु आर्थिक लाभ कम और परेशानी ज्यादा होगी! अपमान के घूंट कई बार पीने पड़ेंगे! आमदनी से ज्यादा खर्च होने लगेंगे! संतोष की बात यह होगी की धन अति शुभ कार्यों में व्यय होंगे! कुछ सौदे तात्कालिक समयानुसार काफी अधिक महँगा लगेगा! परन्तु आगे चलकर वह सौदा जीवन की दशा और दिशा को बदल कर रख देगा! अग्यात भय बना रहेगा! पैसा पानी की तरह बहेगा पर लाभ उतना नहीं होगा!  गुरु की दशा आरम्भ होने से पूर्व  और गुरु की दशा में गुरु की ही अन्तर्दशा में जिसके लिए अपना सर्वस्व न्योच्छावर कर देंगे वही व्यक्ति (स्त्री/पुरुष) आपकी  नींव खोदेगा और आपका पतन देखकर खुश होगा! जीवन का वास्तविक स्वरुप का दर्शन होगा! आप अपने को अकेला पाएंगे! इतना कुछ होने के बावजूद भी जातक के  द्वारा कई परोपकारी कार्य पूर्ण होंगे! पूर्व काल में किये परोपकार कई बार ऐसी परिस्थितियों से निकाल लेगा की जातक को अचानक मिले शुभ फल का कारन समझ में नहीं आयेगा! अपने लोग ही अपमानित करेंगे! खून का रिश्तेदार ही सबसे ज्यादा तकलीफ देगा! कोई स्त्री मानसिक यंत्रणा का कारन बनेगी!

मकर लग्न में यदि गुरु की दशा चल रही हो तो जातक को चाहिए की अपना धैर्य बनाये रखे! अधीरता में लिए गए सारे  निर्णय गलत साबित होंगे! यह सबसे कठिन काल सिद्ध होता है! कई बार तो परिस्थिति इतनी विपरीत हो जाएगी की खुद पर संदेह होने लगेगा!नजदीकी से नजदीकी व्यक्ति भी साथ छोड़ जायेगा! खासकर दशा के अंत में जब राहू की अन्तर्दशा चलेगी तो भयावह परिणाम सामने आयेंगे! गुरु की सम्पूर्ण दशा दुखदायी ही साबित होगी! हाँ,यह अवश्य होगा की जब-जब शुभ ग्रहों की अन्तर्दशा आएगी तब-तब कुछ सुखद फल अवश्यमेव प्राप्त होंगे! सामान्यतया तीसरे और द्वादश भाव से सम्बंधित फल बुरे रूप में ही फलित होंगे! ऐसे समय में जातक को चाहिए की उन मित्रों पर भरोसा करे जिसके नाम का प्रथम अक्षर स, ग, द, म, र और क से आरम्भ होता है! मकर, कुम्भ,वृषभ और तुला लगनवाले व्यक्ति ही सच्चे  हितैषी सिद्ध होंगे! यह बात अनुभूत और पत्थर पर लकीर की तरह सिद्ध है! मकर लग्न के व्यक्ति के लिए शनि की दशा मनोरथ को सिद्ध करने वाली होती है! यही वह समय होता है जब व्यक्ति द्वारा फेंका गया पासा कभी उल्टा नहीं पड़ता! यदि शनि राजयोग का निर्माण कर रहा हो तो सफलता के शिखर पर पहुंचा कर दम लेती है! 

गुरु की दशा इतना अशुभ होते हुए भी कुछ मामलों में अद्भुत होता है! जातक को नए -नए के लोगों से सम्पर्क बनते है! दूर-दूर तक सम्बन्ध होने लगते है! धार्मिक कार्यों और गुप्त सिद्धियों में रूचि बढ़ने लगती है! सिद्ध पुरुषों के दर्शन होते है! यदि सूर्य या केतु से गुरु का कोई सम्बन्ध बन रहा हो तो जितने ग्रहों की दिष्टि गुरु पर पड़ती है उतनी बार दैवीय शक्ति से साक्षात्कार होने की संभावना प्रबल होती है!

उपाय:- (१)   गुरुवार को पिला/नीला वस्त्र धारण करें!
          (२)   ठाकुरजी के दार्शन गुरुवार को अवश्य करें!
          (३)   पीपल की लकड़ी से १०८ बार ॐ गूं गुरुवे नमः स्वाहा का उच्चारण करते हुए हवन करे! ध्यान रहे लकड़ी को गाय 
                  के घी में डुबोकर हवन कुंद में डालें!        


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