Monday, August 15, 2011

India Against Corruption

मजबूर मनमोहन सिंह यानि एक सिख सरदार की मजबूती आखिकार झलक ही गयी ! एक निहत्थे  शांतिपूर्ण सत्याग्रही को भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने  पर उन्हें जेल में डाल दिया ! पूर्व में एक सिख सरदार  इसी प्रकार की कारवाई के खिलाफ अंग्रेजों को सबक सिखाते हुए फांसी पर झूल गया था!

भारत ! तुम क्या से क्या हो गए ?

Thursday, August 11, 2011

भारत और भ्रष्टाचार !

भ्रष्टाचार का क्या मतलब है ? भ्रष्ट  आचरण  ! क्या हम अपना आचरण सही रख पा रहे है ? यदि नहीं तो भ्रष्टाचार से कैसे निज़ात पाएंगे? जन लोकपाल विधेयक को दरकिनार करके  सरकार मनमर्जी कर रही है! परन्तु चुकी हम कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता है इसलिए सरकार का विरोध नहीं कर सकते! मनमोहन सिंह जैसे इमानदार व्यक्ति के रहते भ्रष्टाचार की गंगोत्री बह रही है! सिख धर्म जिसमे लंगर चलने की अनूठी और सफल परम्परा है ! निर्भीकता और त्याग जिसकी ताकत है ! उसी समाज का सरदार अपनी मजबूरी जताता है ! महान अर्थशास्त्री के प्रधानमंत्री रहते महंगाई के कारन मुबई का एक व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है ! सरकार के गोदाम में अनाज बेकार हो रहे है! सुप्रीम कोर्ट मुफ्त में अनाज वितरित करने का आदेश देता है! परन्तु हमारे ईमानदार प्रधानमंत्री कुछ हो गया और कुछ बाकि है के इंतज़ार में है शायद ! व्यक्ति का कर्म कैसा रहा है जीवन में इसका पता अंतिम समय में यानि मृत्यु काल में ही चलता है ! मनमोहनजी ! शनि का तुला राशी में प्रवेश १३ नवम्बर २०११ को हो रहा है! सावधान ! शानिदेवजी ने अपने पिता सूर्यदेव को भी न्याय और इमानदारी का पाठ समझा दिया था ! किसी तरह के भ्रम में न रहे ! प्रायश्चित का मौका भी न मिलेगा!

Monday, June 13, 2011

Aryavarte magadhkshetre: Aryavarte magadhkshetre: जन्म कुंडली में द्वितीयेश...

Aryavarte magadhkshetre: Aryavarte magadhkshetre: जन्म कुंडली में द्वितीयेश...: "Aryavarte magadhkshetre: जन्म कुंडली में द्वितीयेश की महादशा!"

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Aryavarte magadhkshetre: Aryavarte magadhkshetre: मकर लग्न में चन्द्रमा की दशा

Aryavarte magadhkshetre: Aryavarte magadhkshetre: मकर लग्न में चन्द्रमा की दशा

Aryavarte magadhkshetre: जन्म कुंडली में द्वितीयेश की महादशा!

Aryavarte magadhkshetre: जन्म कुंडली में द्वितीयेश की महादशा!

जन्म कुंडली में द्वितीयेश की महादशा!

         महादशा के फलों की व्याख्या  में आज मै द्वितीयेश यानि द्वितीय भाव के स्वामी की महादशा के फलों की व्याख्या करूँगा! द्वितीय भाव सम माना जाता है! सम का अर्थ है न अच्छा न बुरा! इस भाव का स्वामी अपनी स्थिति के अनुसार फल देता है! यानी कुंडली में जहाँ वह स्थित है उसके अनुसार फल देता है! यदि ग्रह दो राशियों का स्वामी हो तो इस भाव का स्वामी अपनी दूसरी राशी (जिस भाव में उसकी दूसरी राशी पड़ती  हो!) के स्वामित्व के अनुसार फल देता है! यह सामान्य नियम है! परन्तु यह नियम ग्रहों के फल के वर्णन के लिए है! जैसे मान ले की मेष लग्न है, तो मेष लग्न में द्वितीय भाव का स्वामी शुक्र होगा! शुक्र की दूसरी राशी सप्तम भाव में पड़ती है! अब शुक्र सप्तम भाव के अनुसार फल देगा!  जीवन भर शुक्र का फल सप्तमेश के रूप में ही मिलेगा!

         महादशा का फल ग्रह के अनुसार नहीं प्राप्त होता है! दशा का फल भाव के अनुसार ही मिलता है! ग्रह अच्छे या बुरे हो सकते है! परन्तु भाव हमेशा एक सा रहता है! जैसे कोई ग्रह किसी लग्न के अच्छा है तो वही ग्रह दुसरे लग्न के बुरा हो सकता है! ग्रहों का अच्छा या बुरा होना स्थिति के अनुसार है न की भाव के अनुसार! यदि ग्रह स्वराशी,उच्च, मुल्त्रिकोनादी हो या क्षेत्र सम्बन्ध बना रहा हो तो अच्छा है और वह अच्छा फल देगा! अन्यथा बुरा फल देगा! यदि ग्रह अच्छा सिद्ध हो रहा हो तो यह जरुरी नहीं है की वह अपनी दशाकाल में अच्छा ही फल दे! यदि वह बुरे भाव का स्वामी है तो दशाकाल के दौरान बुरा फल ही देगा! उदहारण स्वरुप मेष लग्न में शुक्र यदि उच्चादी होकर शुभ सिद्ध हो रहा है तो वह व्यक्ति भूमि, भवन,वस्त्र, वाहन,पत्नी,भोग-विलाश,सांसारिक सुख, ऐश्वर्य आदि का शुभ फल ही देगा! परन्तु जब शुक्र की महादशा काल आरंभ होगी तो द्वितीय भाव सम्बन्धी अशुभ फल प्राप्त होने लगेंगे! अस्तु!
     
        दशा के दृष्टिकोण से द्वितीय भाव अशुभ गिना जाता है! इसका कारन यह है की द्वितीय भाव मारक भाव है! मारक भाव का मतलब है मृत्यु देनेवाला! अब मृत्यु से बढ़कर भला अशुभ और क्या हो सकता है! अतः द्वितीय भाव का स्वामी दशाकाल के दौरान अशुभ फल ही देगा! 

         द्वितीय भाव वाणी,कुटुंब,शासन,सत्ता,मंत्रिमंडल,उच्च शिक्षा,बंधन,परिवार,मुख,चेहरा,व्यक्तित्व,मारक, अचल संपदा,धन,संचित धन,चचेरा भाई/बहन,पत्नी की मृत्यु आदि का है! अब दशाकाल के दौरान द्वितीय भाव का स्वामी इन सभी मामलों में अशुभ फल ही देगा भले ही दशास्वामी शुभ ग्रह हो या अशुभ हो! इस भाव का स्वामी अपनी दशा में मृत्युतुल्य कष्ट देगा ! फल इस प्रकार होगा :- वाणी चिरचिरी हो जाएगी , परिवार और कुटुम्बियों से सम्बन्ध ख़राब हो जायेंगे, सत्ता में यदि हो तो सत्ताच्युत हो जायेंगे, शिक्षा में बाधा आयेगी, प्रतियोगिता में सफलता हाथ नहीं लगेगी, बंधन/जेल जाने की नौबत आ सकती है, भंयकर मानसिक वेदना होगी, सर में चोट/घाव हो सकता है, संचित धन खर्च होने लगेंगे, अचल संपदा संबंदी निर्णय बाद में गलत सिद्ध होंगे, चचेर भाई/बहन से विवाद होगा, पत्नी के कारन भरी कष्ट होगा या पत्नी को भरी कष्ट होग जिससे आप परेशां होंगे,मानहानी का भय सताता रहेगा, सगा से सगा भी (सहोदर) भी शत्रुवत व्यव्हार करने लगेगा, बदनामी होगी, कुल मिलकर द्वितीयेश की दशा जीवन की कठिन काल सिद्ध होगी! कोई भी उपाय कम नहीं करेगा! अस्तु!

         सलाह:- (१)   धैर्य धारण करे! यह आपके धैर्य की परीक्षा का समय है!

                      (२)   अपने हितैषियों की पहचान ही आपको उबार सकता है! जिन्होंने आपको पूर्व में मदद की 
                               है उनसे अपने संबधों को सुधारे!
                      
                       (३)   द्वितीयेश से सम्बन्धित लकरी से हवन नित्य प्रर्ति  करे!    


        नोट:-     द्वितीयेश  से संबधित रत्नों को धारण करना आ बैल मुझे मार वाली स्थिति पैदा करेगी! अतः रत्न            
                      धारण न करे! 

Sunday, May 29, 2011

शेखर जी की कुंडली का सामान्य फलादेश !

प्रथम भाव  -  सूर्य लग्नेश होकर भाग्य भाव में उच्चस्थ है ! सर्वश्रेष्ठ फल देगा! पिता के प्रतिनिधि के रूप में गिना जाने के कारन पिता के द्वारा किये गए सुकर्मो का पूर्ण फल देगा! सूर्य अत्मकारक है नवं भाव पुन्य का, पूर्व जन्म का है अतः जातक द्वारा पूर्व  जन्म में किया गया कर्म पूर्ण रूप में मिलेगा! शनि कर्मो के अनुसार फल देता है ,नवम भाव पर दृष्टि के कारन आत्मा और परमात्मा के बीच का सम्बन्ध की गुथी को सुलझाने की ताकत रखता है! अतः यदि जातक परोपकार और कृतज्ञता को अपना ले तो प्रकृति के रहस्यों को सहज ही समझ सकता है! सूर्य राजा है, लग्नेश होकर अत्यंत बलि है! जाहिर है जातक अपने जीवन काल में प्रसिद्धी,सम्मान,यश,सफलता, महत्वाकांछा की पूर्ति जैसे फलों को भोगेगा! ५६वे वर्ष में आत्मसाक्षात्कार कर अपने इहलोक और परलोक को सुधार  लेगा इसमे तनिक भी संदेह नहीं है!  जातक को चाहिए की अपने पिता के स्नेही लोगों का आदर और सम्मान करे ,इनका अनादर पुन्य कर्मो को क्षय करके  jivan की सबसे महत्वपूर्ण इच्छा की पूर्ति में  बाधक बन जायेगा! राज्योग्कारक होने के कारन सूर्य जातक की हर इच्छा की पूर्ति करेगा! जातक को चाहिए की सूर्य षष्ठी व्रत अवस्य करे!

द्वितीय भाव- बुध द्वरा संचालित यह भाव  श्रेष्ठ है! बुध भाव में सूर्य के साथ होने के कारन बुधादित्य नमक राजयोग का निर्माण कर रहा है! यह भाव परिवार,कुटुम्बियों,शासन,उच्च शिक्षा,सम्मान , अचल धन सम्पदा का भी है! अतः इन सभी मामलों में बुध अति श्रेष्ठ फल देगा! इसका फल यह है की जातक के परिवार,कुटुंब में कोई न कोई उच्च शिक्षित,शासन  को प्रभाव्वित करनेवाला, अति धनि होगा और जातक को लाभ दिलाएगा! जातक स्वयं भी उच्च शिक्षा प्राप्त करेगा और महाधनी होगा! भाग्य का साथ इन सभी मामलों में प्राप्त होगा! चन्द्रमा की उपस्थिति भी इस भाव में है! चन्द्रमा हानि/व्यर्थ का खर्च/परेशानी भाव का स्वामी होकर शनि द्वारा दृष्ट है! अतः चन्द्रमा इन सभी मामलों में अशुभ फल देगा! चन्द्रमा मन का कारक है,इसके दायीं ओरशनि और बायीं ओर राहु है! दोनों ही राजयोग भंग करते है! शनि दुःख और परेशानी का कारक है! चन्द्रमा राहू से भयभीत रहता है! अतः जातक की मानसिक परेशानियों के लिए दोनों ही ग्रह महा अशुभ सिद्ध होंगे! चन्द्रमा शनि अधिष्ठित राशी का स्वामी होने के कारन दूषित हो रहा है, चन्द्रम माता का कारक है,यह इस बात का प्रमाण है की अपने जीवन काल में माता के कारन जातक को भयंकर मानसिक दुखों का सामना करना ही पड़ेगा ! शनि और राहू के मध्य और मंगल से दृष्ट होने कारन चन्द्रमा तीनों पापी ग्रहों द्वारा बुरी तरह प्रभावित हो रहा है! अतः कम से कम जीवन में तीन बार बेहद मानसिक तनाव झेलने ही होंगे!जातक को चाहिए की सोमवार को उजला वस्त्र  धारण करे और खीर का सेवन करे तथा शंकर भगवान् का ध्यान करे! 

तृतीय भाव- इस भाव का स्वामी दानवों के गुरु शुक्राचार्य है! जो उच्च के है, शुक्र पत्नी कारक ग्रह है! तीसरा भाव आत्मविश्वास का है अतः जातक प्रबल अत्मविस्वासी होगा, पत्नी का बल पाकर कई दुष्कर कार्य सहह्ज ही कर लेगा! शुक्र उच्च होकर होकर जहाँ एक ओर अद्भुत फल देगा वहीँ ashtam  भाव में शत्रु के साथ होने के कारन कई मुसीबतों का भी कारन बनेगा! इसका वर्णन अष्टम भाव में किया जायेगा! राहू की उपस्थिति उत्तम योग है! यह भाव राहू को अत्यंत प्रिय है,अतः जातक अत्यंत पराक्रमी,साहसी,निडर,अपने बहुबल पर भरोषा करनेवाला,विपरीत स्थितियों का डटकर मुकाबला करनेवाला होगा! खतरे मोल लेने की प्रवृति  होगी जो उसे नई उचाईयों पर पहूँचाकर ही दम लेगी! जातक को चाहिए की जब विकट परिस्थितियों का सामान हो तब गोमेद ६ रत्ती से ऊपर का धारण करे! राहू जातक को सरे सुखों का भोग कराने  में अकेला ही काफी है!     

चतुर्थ भाव-  इस भाव का स्वामी मगल है! शुक्र के साथ अष्टम भाव में है! मंगल नवमेश  भी है! अतः परम शुभ है! यह भाव भूमि,भवन,वाहन,वस्त्र,सभी प्रकार के सुख,सार्वजानिक जीवन का है! मंगल इन सभी मामलों में अद्भुत फल देगा! इस कुंडली मे मंगल से ज्यादा शुभ ग्रह कोई भी नहीं है! जाहिर है मगल जातक एक से अधिक भूमि,भवन इत्यादि अव्श्मेव  प्रदान करेगा! हाँ यह अवश्य है कि अपने शत्रु शुक्र के साथ होने के कारन सब कुछ  होते हुए भी उसका सुख नहीं के बराबर ही भोग पायेगा! कारन यह है कि शुक्र उच्च होने के कारन मंगल को अपने तरीके से चलने पर मजबूर कर देगा! शुक्र दैत्याचार्य है और मगल देवताओं  का सेनापति! दोनों कभी भी एक दुसरे कि नीतियों को पसंद नहीं करते है! जातक को चाहिए कि अपने हितैषियों/मित्रों कि पहचान करे और उनसे सलाह ले अन्यथा मंगल द्वारा प्रदान सुखों का फल क्षीण  हो जायेगा!

पंचम भाव - इस भाव का स्वामी गुरु है! गुरु स्वाभाविक शुभ ग्रह है! दशम भाव में होने के कारन अत्यंत शुभ फल प्रदान करा रहा है! पंचम भाव से शिक्षा,नौकरी,विद्या,संतान,मनोरंजन,पूजा,तंत्र-मन्त्र,जीजा,बुधि,मानसिक स्टार का है! इन सभी मामलों में गुरु अति शुभ फल प्रदान करेगा! कर्म भाव  में  बैठकर शुक्र के साथ क्षेत्र सम्बन्ध बना रहा है! यह सबसे uttam सम्बन्ध है! निसंदेह गुरु श्रेष्ट विद्या,बुधि,संतान,आदि उपरोक्त फल पर्दान करेगा! परन्तु शुक्र गुरु का शत्रु है! शुक्र पत्नी का कारक है और गुरु पुत्र का कारक है! अतः पुत्र प्राप्ति के पश्चात जातक का सम्बन्ध अपने परिवार और सम्बन्धियों  से अच्छा नहीं रह पायेगा, बुधि कलुषित  हो जाएगी! कारन यह है कि उच्च शुक्र कि पूर्ण दृष्टि परिवार और संबधियो से संबधित भाव पर है! मंगल के साथ युति भी है ! जातक को चाहिए कि शुक्रवार के दिन गुल्लर कि लकरी से ॐ शुं शुक्राय नमः स्वाहा का १०८ बार करे सुकर का दोष शांत हो जायेगा! पुत्र भाव का कारक और स्वामी गुरु का कर्म भाव में स्थित हों इस बात का प्रमाण है कि जातक का पुत्र अपने कर्मो से पर्सिधि को प्राप्त  करेगा! दशम  भव उचाई का है , अतः जातक का पुत्र अपने जीवन में उच्च स्तर को प्राप्त कैगा!  

षष्ट भाव-इस भाव का स्वामी शनि है! शनि दुःख और बाधा का कारक है ! यह भाव रोग, ऋण,शत्रुका है ! अतः  जातक को शत्रु से सामना करना ही पड़ेगा! नसों से सम्बंधित रोग होंगे,ऋण कि भी स्थिति आएगी! परन्तु शनि द्वारा इस भाव पर दृष्टि  के कारन जातक इन सभी मामलों से सकुशल बच निकलेगा! कोई उपाय कराने कि आवश्यकता  नहीं है!

सप्तम भाव- यह  भाव भी शनि द्वारा संचालित है! इस भाव का कारक शुक्र उच्चस्थ है! अतः उच्च स्तरीय पत्नी कि प्राप्ति के स्पष्ट प्रमाण है! शुक्र और मंगल कि युति ज्योतिष के एक रहस्य को दर्शाते है! वह यह है कि जब भी ये दोनों एक साथ होते है तो जातक अत्यंत कामी होता है! उसकी पत्नी उसे प्रेमी कि तरह प्यार करती है! वह स्वयम भी पत्नी को प्रेमिका  कि तरह प्यार करता है! पत्नी काम क्रीडाओं  के दौरान भरपूर साथ देती है! इस प्रकार इस मामले में जातक सौभाग्यशाली होता है! एक बात और जातक पत्नी के अतिरिक्त  एक से अधिक सुन्दर स्त्रियों का सानिध्य प्राप्त करता है और उनसे सुख प्राप्त करता है! ४८ वे वर्ष में इसी प्रकार  के संबंधों के कारन जातक को आशातीत धन लाभ होता है! शनि के कारन जातक दाम्पत्य शुख में बाधा आती है! जातक को पत्नी के कारन सुख तो प्राप्त  होता है परन्तु पत्नी सुख  नहीं होता है! शुक्र अपनी उच्च स्थिति के कारन भोग विलाश, विलाशिता सम्बन्धी वस्तुओं तथा भूमि,भवन,वाहन,वस्त्र अदि का लाभ अवास्य्मेव प्राप्त होगा परन्तु शनि द्वारा संचलित होने के कारन दाम्पत्य जीवन कि सफलता ५०% से अधिक नहीं हो पता है! जातक को चाहिए कि कृतग्य रहना सीखे और परोपकार करे  अन्यथा उच्च शुक्र का मृत्यु स्थान में शत्रु के साथ स्थित होना और शनि का मारकेश होना परम अशुभ स्थितियों का निर्माण करेगा!

अष्टम स्थान- इस भाव का स्वामी गुरु कर्म भाव में स्थित है! शुक्र इसी  भाव में उच्च है! दोनों ही स्थितिया शुभ है! जातक अपने श्रेष्ठ कर्मो के द्वारा mrityu  से पूर्व ही ख्याति को प्राप्त करेगा! मृत्यु के उपरांत उत्तम लोको को जायेगा! मोक्ष को प्राप्त करेगा ! नाश स्थान में शनि मारकेश होकर स्थित है अतः जातक इस शारीर के नाश के बाद दूसरा शारीर धारण नहीं  करेगा! कलियुग में इस प्रकार ग्रहों कि स्थिति ही इस बात को मानने पर विवश करता है कि पूर्व जन्मो के कर्मो का फल इस जन्म में प्राप्त होता है! जातक कि मृत्यु किसी  तीर्थ स्थान में गुरुवार को शुक्र कि होरा में होगी! यह मृत्यु स्थान है! शुक्र यहाँ एक और विशेष परिस्थितियों का निर्माण कर रहा है! तृतीय भाव के फल के दौरान इसे नहीं कहा गया था! शुक्र के कारन जातक बहूत सुख प्राप्त करेगा परन्तु शुक्र कि द्वितीय भाव पर शत्रु के साथ दृष्टि तथा शनि के परम मित्र होने के कारन (शनि कि भी दृष्टि द्वितीयभाव पर है) परिवार/ कुटुम्बियो के लिए दुखद है! द्वितीय भाव भी मारक भाव है ! शनि और मंगल कि दृष्ट में होने के कारन जातक का सम्बन्ध अपने परिवार और कुटुम्बियो के से विच्छेद हो जायेगा! यहाँ तक कि जातक स्वयं किसी परिवार /कुटुम्बियो कि मृर्यु का कारन बनेगा या किसी परिवार/कुटुम्बियो के द्वारा मृत्यु तुल्य कष्ट भोगेगा ! इसका कारन भी जातक कि पत्नी ही बनेगी!

नवम भाव- इस भाव का स्वामी मंगल है! मंगल कि शुभता बताई जा चुकी है! ग्रहों कि उपस्थिति के कारन यह भाव बहुत बलवान है! जातक अत्यंत भाग्यशाली है! उच्च का लग्नेश सूर्य, धनेश और अभेश बुध के साथ केतु कि उपस्थिति  दर्शनीय है! निश्चय ही जातक का भाग्य विलक्षण है! यह महाधनी,प्रतापी,यशस्वी,राजा के समान सुखों को भोगनेवाला, कुल का दीपक, पराक्रमी और पुण्यात्मा तथा परलोक में भी उत्तम लोको को प्राप्त करनेवाला होगा! शनि कि दशम दृष्टी में होने के कारन जातक का परोपकारी  होना इसमे चार चाँद लगाएगा!

दशम भाव- इस भाव का का स्वामी शुक्र उच्च   है!  गुरु इसी भाव में है! गुरु वर्गोत्तम है (लग्न और नवांश कुंडली में दशम भाव में है) ! अतः कर्म भाव होने के कारन अति शुभ है! यह भाव जातक के उत्तम कर्मो को दर्शाता है! चुकि जातक के कर्मो के बारे में कह चूका हु  अतः ज्यादा कहकर  अनावश्यक विस्तार नहीं देनबा चाहता !

एकादश भाव- इस भाव का स्वामी बुध भाग्य भाव में है! यह भाव लाभ,बड़े भाई/बहन,पुत्रबधू का है! अतः जातक बहूत लाभ प्राप्त करेगा! बड़े भाई/बहन भाग्य निर्माण और लाभ में सहायक सिद्ध होंगे! पुत्रवधू भी लाभ प्राप्ति में सहायक सिद्ध होगी! चुकि बुध   भाग्य भाव में  है ,अतः बड़े भाई/बहन के साथ संबंधो के द्वारा लाभ/हानि निर्धारित होगी! जातक मेरा सम्बन्धी है! इसलिए मै ज्यादा नहीं कहूँगा!

द्वादश भाव- इस भाव का स्वामी चंद्रमा  द्वितीय भाव में है ! चन्द्रमा का द्वितीयस्थ होना अति शुभ है! इससे द्वितीय भाव सम्बन्धी फल अति शुभ मिलेगा! परन्तु इस भाव का स्वामी होकर चन्द्रमा अच्छा फल नहीं देगा! व्यर्थ का खर्च,परेशानी,मुसीबत,मानसिक तनाव इत्यादि अशुभ फल प्राप्त होंगे!

दशाफल- सूर्य - अति श्रेष्ठ!
               चन्द्रमा- धन हानि,मानसिक चिंता, दुःख,अपनो से विरोध का फल देगा!

               मंगल-   उत्तम फल देगा! भूमि,भवन,वाहन अदि का लाभ कराएगा! भाग्य के बल पर सरे कार्य संपन्न कराएगा !       

                बुध-धन लाभ कराएगा !

                गुरु- संतान,नौकरी, धन,भिमी ,मनोरंज के लिए अति शुभ!परन्तु अचानक मुसीबत,परेशानी,स्वजन से विरोध,मानसिक यंत्रणा के लए अति अशुभ फल देगा!

                शुक्र- धनादि के लिए और सुकर्मो के लिए अति शुभ फल देगा ! परिवार/सम्बन्धियों के लिए अशुभफल देगा!

                राहू- श्रेष्ठ फल देगा

                केतु- श्रेष्ठ फल देगा!

                शनि -अशुभ फल देगा ! दुःख और बाधा का कारन बनेगा! 

Friday, February 11, 2011

जन्म कुंडली में लग्नेश की दशा

            समयाभाव के कारन कई दिनों के बाद मै आपसे मुखातिब  हो रहा हूँ! इस दौरान मैंने महसूस किया है कि ज्योतिष शास्त्र में कई भ्रांतियां है! जन्म कुंडली और गोचर ग्रह को लेकर उलझन/भ्रान्ति है! जन्म कुंडली में गोचर ग्रहों कि क्या भूमिका है यही मै आज स्पष्ट करने का प्रयास करूँगा!

            जन्म कुडली का अर्थ सिर्फ इतना ही है कि जब किसी का जन्म हुआ उस समय/क्षण आकाश में ग्रहों का संचरण कितने अंशों पर था! ३६० अंशों  का मान सर्वमान्य है ! अब देखना यह है कि जिस स्थान पर व्यक्ति विशेष का जन्म हुआ वहां से दृष्टिपात करने पर आकाश में नवग्रह कितने अंश/कला पर स्थित थे ? बस उसको ही लिख देते है ! चूँकि ३० अंशो का मान एक राशी कही जाती है इसलिए प्रत्येक ग्रह भी किसी न किशी राशी में स्थित होंगे ! जन्म स्थान पर जो राशी  उदित हो रहा हो उसको प्रथम भाव में लिखकर अन्य राशियों को दुसरे, तीसरे भाव में क्रमशः लिख देते है ! इस प्रकार कुंडली  तैयार हो जाती है!
 एक बात और, ज्योतिष शाश्त्र में सिर्फ चक्र (कुडली) की चर्चा है ! जन्म के समय जो चक्र बनता है उसे जन्म कुंडली कहते है ! इसी प्रकार किसी भी घटना की कुंडली बना कर उसका फल कहा जाता है ! किसी बात के लिए या शुभाशुभ जानने के लिए जो चक्र/कुडली बनायीं जाती है उसे प्रश्न कुंडली कहते है! ज्योतिष शाश्त्र में समय/काल  को ही प्रमुखता दी गई है! काल या समय विशेष में जो घटना हुई या घटी उसका फलाफल कहने की विधि का ग्यान ही ज्योतिष शाश्त्र है ! इस तरह जन्म या मृत्यु भी एक घटना ही है जो समय विशेष में होती है ! यही कारन है की कोई भी कार्य करने से पहले लोग ज्योतिषी के पास जाते है और उस कार्य को करने का उत्तम समय पूछते है! ज्योतिषी पंचांग के आधार पर ग्रहों की स्थिति पाता लगाकर उत्तम या अच्छा समय का निर्धारण करते है ! चूँकि जन्म होना (इस धरती पर अवतरण ) सर्वाधिक महत्वपूर्ण समझी जाती है इसीलिए जन्म कुंडली की इतनी महत्ता है और कुछ नहीं!

           जन्म समय को आधार मानकर व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन के बारे में कहा जा सकता है ! ठीक उसी प्रकार किसी भी घटना के बारे में उसकी कुंडली बनाकर उस घटना से संबधित सारी बातें बताये जा सकती है! यही कारन है कि गृह निर्माण/गृहप्रवेश/आगमन/प्रस्थान आदि के बारे मे लोग ज्योतिषी का सहारा लेते है! जैसे कोई गृह का निर्माण करना चाहता है तो ज्योतिषी गणना करके बता देगा कि कौन सा समय गृहरम्भ के लिए उत्तम है! जैसे जन्म कुंडली के आधार पर जन्म भर कि बातें बताई जाती है उसी प्रकार गृहरम्भ काल कि कुंडली बनाकर उस गृह/मकान में कैसा फल घटित होगा यह बताया जा सकता है!

           जन्म समय के आधार पर ही जीवन भर अच्छी या बुरी घटनायें होंगी! गोचर ग्रहों का जन्म समय में स्थिति ही जन्म कुंडली का आधार है! प्रायः सारे विद्वान ज्योतिषी इस सिद्धांत से सहमत होंगे ! एक बार जब समय को आधार मानकर (यहाँ मेरा तात्पर्य पर जन्म समय से है!) जन्म कुंडली बन गई तो फिर उसमे किसी प्रकार का फेरबदल करना जन्म कुंडली के सिद्धांत को नकारना ही है! गोचरवश ग्रहों का जन्म कुंडली में निर्धारण करके यह कहना कि फ़िलहाल आपका समय बूरा इसलिए चल रहा है कि लग्न में या भाग्य भाव में शनि/राहु/केतु/मंगल बैठा है नितांत गलत है! कम से कम मै इस बात से कतई सहमत नहीं हूँ! जब मै यह बात कह रहा हूँ तो यह जानते हुए कह रहा हूँ कि मै परले दर्जे का मूर्ख समझा जाऊंगा! लेकिन मै कविवर महाकवि तुलसीदास जी के मतानुसार अपनी (`मति अनुरूप राम गुन गाऊं`) अत्यल्प बुद्धि के अनुरूप यह कह रहा हूँ! इसमे किसी अन्य स्वनाम धन्य ज्योतिषियों या गुरुजनों का कोई दोष लेशमात्र भी नहीं है! मै जनता हूँ कि यह बात ज्योतिष जगत में मान्य नहीं होगा! परन्तु न दैन्यम न पलायनम के अनुसार न तो किसी ज्योतिषी से क्षमा प्रार्थी हूँ न ही अपनी बात से पीछे हटूंगा! कोई मेरी बात से सहमत हो या न हो इससे मुझे  कोई फर्क नहीं पड़नेवाला है! यह मेरा अनुभव है और ज्योतिष को जितना मैंने जाना है उसी के आधार पर मै यह कह रहा हूँ! यह बात किसी भी ज्योतिष ग्रंथों में नहीं है ! मै एक बात और स्पष्ट कर दूँ कि मैंने ज्योतिष कि शिक्षा (क,ख............) किसी ज्योतिषी से नहीं ली है ! अतः मै गुरु द्रोह के कारन होने वाले पाप से वंचित हूँ! मैंने शत प्रतिशत ज्योतिष का ग्यान (चाहे गलत हो या सही ) स्वाध्याय से प्राप्त किया है! यही कारन है कि मेरा विश्वास राशी फल पर नहीं है! हालाँकि मै भी राशिफल केवल सच पत्रिका (पटना से निकलती है) में लिखता हूँ! मै द टाइम थ्योरी को मानता हूँ ! ज्योतिष को भी इसी परिपेक्ष्य में मैंने जाना है! मै यह बात अपने जीवन काल में पहली बार कह/लिख रहा हूँ! लगभग दो मिनट पहले मैंने अपनी प्राणप्रिया हृदयहारिणी साधना को भी सिर्फ यही कहा है कि मै एक बहूत बड़ी बात लिख दी है, थोड़ी देर में कहूँगा! जब तक उससे न कह लूं मुझे चैन  नहीं आएगा! सच  तो यह है कि ज्योतिष मेरी रूचि बाल्य काल से रही है और पढता भी रहा हूँ , लेकिन ज्योतिष का ग्यान का आधार मेरी जीवन संगनी ही है! यदि यह न होती तो ज्योतिषी के रूप में शायद ही कोई जानता! अब मुझसे नहीं रहा जा रहा है! मेरा शिर भारी सा हो रहा है! मै लिखना बंद कर यह बात साधना को सुनाने और समझाने जा रहा हूँ ! धन्यवाद्!            

Monday, January 10, 2011

कुम्भ लग्न में गुरु की दशा!

कुम्भ लग्न को कई ज्योतिषी अच्छा नहीं मानते ! इसका कारन शनि द्वारा अधिष्ठित राशी का लग्न में होना  है! बात कुछ हद तक ठीक भी है ! शनि दुख और बाधा का कारक है ! इसीलिए मकर और कुम्भ लग्न के जातकों के जीवन में कई ऐसे अवसर आते है जब महादुख और संताप के कारन वह स्वयं को अकेला पाता है! ऐसी स्थिति भी जीवन में एक से अधिक बार आती है जब कोई भी उसकी बातों का विस्वास नहीं करता! उसके सगे सम्बन्धी उसे त्यागना ही अच्छा मानते है! जबकि वह एकदम पाक-साफ होता है ! जो व्यक्ति पाक-साफ हो फिर भी उसे दुत्कारा और अपमानित किया जाये, अछूत की तरह व्यवहार किया जाये, उसकी  क्या दशा होगी सहज ही अनुमान किया जा सकता है! उसका जीवन संघर्षों में ही गुजरता है! इतना सब होने के बावजूद कुम्भ लग्न के जातक अपने क्षेत्र में अनुपम होते है! जिस प्रकार स्वर्ण अग्नि में तपकर और भी देदीप्यामान हो उठता है ठीक उसी प्रकार कुम्भ लग्न के जातक संघर्षों और दुखों को में से निकलकर अपनी लक्ष्य को पा कर ही दम लेते है! उदहारण के तौर पर श्री रामकृष्ण परमहंस जी और मोहम्मद अली जिन्ना साहब का नाम लिया जा सकता है!

कुम्भ लग्न में गुरु दशा की अत्यंत दुखदायी होती है! जातक को इस दौरान भयकर बदनामी, अपयश, महा गरीबी, कर्ज में डूबना, सगे सम्बन्धी द्वारा धोखा, व्यापार में भयंकर हानि, मतिभ्रम आदि  सब दुःख और क्लेश भोगने ही पड़ते है! जिससे जातक बुरी तरह् व्यथित हो जाता है! यदि शनि अच्छे भाव या राशी में न हो तो उपरोक्त बातों का होना और भी निश्चित है!

हाँ! एक बात ये भी होती है की जातक इस दौरान नया व्यापार अवस्य आरंभ करता है! आर्थिक लाभ भले ही न हो परन्तु उसकी कीर्ति और व्यक्तित्व समाज में असाधारण रूप से बढ़ने लगता है! अपने भले त्याग करे लेकिन मित्रों और अधिकारीयों के साथ समाज में उसकी विस्वसनीयता  इतनी बढ़ जाती है की गुरु की दशा समाप्त  होते ही अर्थात शनि की दशा के दौरान जातक अपनी महत्वाकांक्षा पूरी कर लेता है!

उपाय:-  (१) पीले रंग या हलके आसमानी रंग के वस्त्र धारण करे!
           (२)  पुखराज ५ रत्ती का दाहिने हाथ की तर्जनी में गुरुवार को धारण करे !
           (३)  ॐ गूं गुरुवे  नमः स्वाहा का उच्चारण करते हुए पीपल की लकड़ी से गुरवार को १०८ बार हवन करे!

नोट:-   वैसे कोई उपाय ज्यादा फायदा नहीं पहुंचा सकता! अतः धैर्य धारण करते हुए परोपकारी  कार्य करते रहे!

Friday, January 7, 2011

मकर लग्न में चन्द्रमा की दशा

मकर लग्न में चन्द्रमा सप्तमेश होकर दांपत्य जीवन के लिए कई तरह से शुभ होता है! चन्द्रमा नक्षत्रों की रानी है! स्वयं ही लग्न की ताकत रखता है! यदि नीच, मकर राशी में या षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में स्थित न हो तो अकेला ही जातक के जीवन को धन्य कर देता है! उपरोक्त स्थितियों में यह अपनी दशा/अन्तर्दशा के दौरान उन परिस्थितियों का निर्माण करता है जिससे जातक को मानसिक पीड़ा होती है! जैसा सोचता है उसके ठीक विपरीत फल प्राप्त होता है! चन्द्रमा मन का कारक है! सुख दुःख की अनुभूति मन के द्वारा ही होती है! इसीलिए मानसिक कष्टों का कारन चन्द्रमा ही होता है!

 चन्द्रमा उपरोक्त स्थिति में अपनी दशा/अन्तर्दशा के दौरान ही मानसिक चिंताए देगा बाकि समय नहीं! मकर लग्न में चन्द्रमा लग्न में बैठकर सप्तम भाव को अति शुभ बना देता है! राजयोग का निर्माण करता है! केन्द्रेश होकर लग्न में होना इस बात का प्रमाण है की व्यक्ति का दाम्पत्य जीवन शानदार और सफल रहेगा ! ऐसे व्यक्ति प्रेम के मामले में भाग्यशाली होते है! मकर लग्न में प्रेमी/प्रेमिका भाव का स्वामी एक अन्य स्त्री ग्रह शुक्र बनता है! यदि शुक्र का सम्बन्ध किसी भी तरह से चन्द्रमा से हो जाये तो पत्नी के अतिरिक्त प्रेमिका भी अवस्य होती है! आश्चर्यजनक बात तो यह है की जातक पत्नी और प्रेमिका दोनों संबंधों को  बखूबी निभाता है! परन्तु पत्नी से सम्बन्ध चिरस्थायी ही रहता है! सप्तमेश चन्द्रमा भोग का निर्माण करता है! भोग बिना धन के नहीं होता! अतः धनागमन अवस्य करता है! व्यापर से लाभ उठाता है! ऐसा व्यवसाय जिसमे किसी स्त्री का सहयोग या पत्नी का सहयोग हो कभी विफल नहीं होता! जातक को चाहिए की बड़े-बड़े व्यापर पत्नी के नाम से ही करे! क्योंकि बड़े व्यापर का भाव भी एक स्त्री ग्रह शुक्र द्वारा ही प्रभावित है! शुक्र बड़ा ही सुन्दर ग्रह है! अतः व्यापारिक साझेदार कोई सुन्दर स्त्री होगी! पुरुष मित्रों के साथ भी व्यापर सफल होगा परन्तु कुछ कम ही होगा! इसमे धोखा की संभावना ज्यादा रहेगी ! यदि किसी को व्यापार के लिए पैसे देने हो तो बुधवार को कदपि न दे! इस दिन दिए गए पैसे बड़ी मुश्किल से लाभ दिला पाएंगे! पूंजी फंसने की संभावना रहेगी! साझेदारी के काम सफल होगा! शनि चर और स्थिर दोनों राशियों का स्वामी बनता है! चन्द्रमा स्वयं चर राशी (कर्क) का स्वामी है! अतः ऐसे कार्यों में जिसमे सामान की खपत जल्दी-जल्दी होता हो, व्यापार की दृष्टि से उत्तम साबित होता है! चन्द्रमा मारकेश होता है! परन्तु इसे मारक का दोष नहीं होता! चन्द्रमा माता है! माता कभी भी शिशु की मृत्यु नहीं चाहेगी! चन्द्रमा  की मूल दशा में निधन प्रायः नहीं होता है! स्पष्ट है जातक की आयु लम्बी होती है! यही नहि उसकी जवानी भी दीर्घ समय तक बरक़रार रहती है! जातक को चाहिए की ज़मीन, फैंसी वस्तुओं, भूमि/जल से उत्पन्न पदार्थों, उजली वस्तुओं, रस (तरल) आदि पदार्थों से संबधित व्यवसाय करे! लेन-देन अपने हाथों से न करके पत्नी के हाथों से करवाए! शनि अंधकार को पसन्द करता है! अतः व्यापार के सिलसिले में रात्रि में ही अपनी योजना बनाये! सूर्योदय से सूर्यास्त तक कोई भी योजना नहीं बनानी चाहिए! तात्पर्य यह की जब तक सूर्य उदित रहे अपनी योजना के बारे में किसी से चर्चा स्वयं न करे! चंद्रमा सोमवार का प्रतिनिधि है! अतः व्यापारिक कार्यारम्भ सोमवार के दिन ही करे!

विशेष:- शनि जब लग्नेश होकर जब  लग्न, पंचम और दशम भाव पर दृष्टि डाले या उसी में स्थित हो तो जातक को चाहिए की शिक्षण संसथान खोले या  बच्चों को मुफ्त में पुस्तक/पुस्तिका बांटे! इसका फल यह होगा की महाप्रयाण काल की बेला में भगवती की कृपा अवस्य होगी!

नोट:- पत्नी की प्रसन्नता ही सफलता की कुंजी साबित होगी! भतीजा/भतीजी के प्रसन्न रहने पर कई ऐसे कार्य बन जायेंग जिसे जातक असंभव समझता है! भतीजा/भतीजी को सोमवार के दिन उजला अन्न,वस्त्र,चाँदी आदि देना व्यापार और दाम्पत्य जीवन के लिए अति शुभ होता है! इससे निःसंतान को संतान और पुत्रहीन को पुत्र की प्राप्ति होती है!

उपाय:- (१)   सोमवार के दिन उजला वस्त्र पहने!
          (२)   चन्द्रमा की दशा/अन्तर्दशा/प्रत्य्न्तार्दशा के दौरान या ऐसे भी चाँदी का कड़ा दाहिने हाथ में धारण करे!
          (३)   पलाश की लकड़ी से १०८ बार ॐ सोम सोमाय नमः स्वाहा का उच्चारण करते हुए हवन करे!    

मकर लग्न में मंगल की दशा

मकर लग्न में मंगल चतुर्थ और एकादश भाव का स्वामी होता है! केन्द्रेश होकर अति शुभ हो जाता है परन्तु एकादशेश होकर कुछ अशुभ फल करता है! मंगल यदि स्थिति के अनुसार राजयोग का निर्माण कर रहा हो तो परम शुभ फल देता है! एकादश भाव का स्वामी होने से धन से सम्बंधित अत्यंत शुभ फल देता है ! अपनी दशा के दौरान जातक को धन सम्बन्धी चिंता नहीं करने देता है! यदि दशा मध्यायु में पड़ती है तो जातक को इतना धन देता है वह भूमि का क्रय अवस्य्मेव करता है! नौकरी करता है! धन की अधिकता के कारन अहंकारी बना देता है! यदि मध्यायु से पूर्व दशा आती है तो धन कमाने के नविन विचार/तरीके के बारे में कल्पना किया करता है! ऊँचे-ऊँचे ख्याल मन में आते रहते है! यदि मध्यायु  के बाद दशा आती है तो अपने पराक्रम से इतना धन अर्जित करता है की लोग आश्चर्य करते है! ऐसे में जातक को चाहिए की मंगल की दशा या अन्तर्दशा में ज़मीन की खरीद गुरुवार को ही करे!इसका लाभ यह होगा की पूंजी की फंसने की संभावना नहीं रहेगी! यदि पूंजी फंसती भी है तो गुरु या शनि दशा/अन्तर्दशा में कई गुना लाभ के साथ लौटा देता है! मकर लग्न में एकादश भाव से सम्बंधित बाकि सारे फल अशुभ ही होते है! बड़े/छोटे भाई से वैचारिक मतभेद होंगे! भाई प्रति द्वंद्वी की तरह व्यवहार करेंगे! कम बनाना तो दूर काम बिगड़ जाने पर खुश होंगे! पुत्र वधु को खून से सम्बंधित बीमारी होगी! बड़े भाई के लिए स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा समय नहीं रहेगा! ऑपरेशन की नौबत भी आ सकती है! यदि मंगल की दृष्टि एकादश भाव पर हो तो बहन के लिए अत्यंत दुखदायी होता है! जातक का खर्च आमदनी से कहीं ज्यादा हो जाता है! परन्तु आवास्यक्त्नुसार लाभ होता रहता है! जहाँ-जहाँ भी मंगल की दृष्टि पड़ेगी उसी भाव सम्बन्धी बातों में खर्च बढेगा! दामाद या जीजा के लिए भी अच्छा नहीं रहता है! चोट लगने की संभावना रहती है!घुटने से निचे पिंडली में दर्द होता है या चोट के निशान बन जाता है! ठेकेदारी में भी हाथ आजमाने की इच्छा जागृत होती है जो आगे चलकर दुसरे रूप में काम आता है! यदि मंगल स्वयं एकादश भाव में न बैठा हो तो मकर लग्न वालों को ठेकेदारी का कार्य नहीं करना चाहिए!

मंगल की दशा में चतुर्थ भाव से संबधित फल अति शुभ साबित होते है! जातक को भूमि, भवन, माकन, वस्त्र, वाहन, माता, सुख, ऐश्वर्य, सार्वजानिक कार्यों अभिरुचि, मित्र सुख, कृषि, जनता, ससुर आदि का भरपूर सुख होता है! इस दौरान मगल लग्नेश के सामान शुभ साबित होता है! अर्थात. चतुर्थ भाव  से संबधित सारे मामलों में मंगल परम शुभ साबित होता है! जातक को चाहिए यदि मंगल की दशा आरंभ होने वाली हो तो अपनी सारी शक्ति के साथ उपरोक्त फलों की प्राप्ति के लिए प्रयास  करे ! क्योंकि मंगल सेनापति है और वह भी देवताओं का! मंगल उत्तेजित करने वाला ग्रह है! युवावस्था का वह रूप है जो वह सारा काम अपने बाहुबल से प्राप्त कर लेने की योजना बनता है! कालपुरुष की बाहू और कंधे का बल है मंगल! मकर लग्नवालों को चाहिए की बड़ा-बड़ा कार्य या वैसा कार्य जिसे कर पाना हर किसी के लिए संभव न हो इसी समय आरम्भ करे! कैसा भी विपरीत समय क्यों न चल रहा हो इस समय जातक के पराक्रम का अहसास लोगों को होने लगता है! किसी न किसी बात के लिए उसे प्रसिद्धी प्राप्त होने लगती है! उसकी प्रतिभा रंग दिखाने लगती है! इस समय देखे गए ख्वाब पुरे होते है! मंगल के बलानुसार शुभ फल अवस्य प्राप्त होते है!

उपाय :- (१)   मंगलवार के दिन गहरा खुनी लाल रंग का वस्त्र धारण करे!
           (२)   चिरचिरी की लकरी से मंगलवार की सुबह १०८ बार ॐ भौम भौमाय नमः स्वाहा का जप करते हुए भगवन विष्णु        
                  की तस्वीर सामने रखकर हवन करे!       
           (३)   ताम्बे का कड़ा मंगल वार को सूर्योदय के समय धारण करे!  
                             

Wednesday, January 5, 2011

मकर लग्न और शनि दशा

मकर लग्न में शनि लग्नेश और द्वितीयेश होता है ! ज्योतिषियों में शनि को लेकर  काफी भ्रम है! यही कारन है की आम लोगों में भी शनि को लेकर काफी बुरी तरह भय का वातावरण बन गया है! यह सब वैसे ज्योतिषियों के कारन है जो खानदानी तौर पर ज्योतिष को व्यवसाय बना कर लोगों का भयादोहन करते है! वस्तुतः कोई भी ग्रह कुंडली में भाव स्थिति के अनुसार ही फल देता है! स्वाभाविक पापी अथवा शुभ  जैसी बातें तो साधारण स्तर पर लोगों को समझाने के लिए ही कहा जाता है! मकर लग्न और कुम्भ लग्न के बारे में भी ऐसी ही धरना है! परन्तु बात ऐसी बिलकुल भी नहीं है! कई ऐसे योग है जो सिर्फ और सिर्फ इन्ही दो लग्नो में संभव है, किसी अन्य में नहीं ! मै उन सब के बारे में अभी कुछ नहीं कहकर मकर लग्न में शिअनी की दशा के बारे में ही अपना विचार व्यक्त करने जा रहा हूँ!

लग्न से रंग, रूप, स्वाभाव, जाती, कद, सर, आयु,रोग, यश, प्रतिष्ठा, धन, दिमाग, स्वास्थ्य,मस्तक,सफलता, व्यक्तित्व, पूर्व जन्म के बचे हुए कर्मो का फल आदि देखा जाता है!

द्वितीय भाव से धन, अचल संपत्ति, कुटुंब, मुख, भोजन , परिवार, वाणी, मारक, शासन-सत्ता, उच्च स्तरीय शिक्षा, सत्यासत्य, जीवन साथी का सुख, दम, खांसी, उपदेशक, मंत्र सिधि, श्राप, वक् सिध्धि आदि का विचार किया जाता है!

मकर लग्न में शनि की दशा के दौरान अशुभ फल की आशा नहीं करनी चाहिए! हाँ, यदि की स्थिति बहूत ही खराब हो (कुंडली में) तो शुभ फल में कमी अवस्य हो सकती है! इसी तरह यदि शनि कुंडली में राजयोग का निर्माण कर रहा हो तो अपनी दशा के दौरान अति श्रेष्ठ फल देगा! उदहारण के लिए मोहम्मद अली जिन्ना साहब का नाम लिया जा सकता है! जिन्होंने अपना लक्ष्य पा ही लिया! भारतीय सिनेमा के महानायक अमिताभ बच्चन जी को देखिये! शनि दशा के पूर्व अमिताभ जी की दशा यह थी की वे फ़िल्मी दुनिया को छोड़कर वापस जाने की सोचने लगे थे! शनि की दशा आते ही क्या से क्या हो गया यह पूरी दुनिया जान रही है!

शनि की दशा के दौरान जातक को चाहिए की अपनी योजना पर जी जान से जुट जाये! क्योंकि ऐसा शुभ समय दुबारा नहीं आएगा! लग्नेश तथा द्वितीयेश होकर शनि स्थिति और हैसियत के अनुसार सर्वोत्तम राजयोग के सामान सुख देता है! अतः उपरोक्त बातों से सम्बंधित शुभ फलों की प्राप्ति अवस्य  होता  है!

यह दशा धन और राज सुख को देने वाली होती है! खाक पति  भी लाख पति बन जाता है! तात्पर्य यह की धनागमन अवस्य होता है! कैसा भी मारक योग क्यों न चल रहा हो शनि की मूल दशा में निधन नहीं होता है! बड़े-बड़े व्यापर, उद्योग आरम्भ होते है! अचल धन का निर्माण होता है! कुटुंब, परिवार, सत्ता के लोग प्रसन्न रहते है! स्वयम शासन से लाभ उठाता है! समाज/राज्य/देश का अधिपत्य प्राप्त करता है! कई सिद्धियों को प्राप्त करता है! आत्म सिधि में लगे व्यक्तियों को विस्मयकारी अनुभूति होती है! जिस क्षेत्र में कार्य कर रहा होता है उसमे अद्भुत सफलता प्राप्त होती है! शत्रु को छिपने की जगह कम पद जाती है! यश, धन, मान, पद, प्रतिष्ठा, सफलता प्राप्त होती है!    

मकर लग्न और शनि दशा

मकर लग्न में शनि लग्नेश और द्वितीयेश होता है ! ज्योतिषियों में शनि को लेकर  काफी भ्रम है! यही कारन है की आम लोगों में भी शनि को लेकर काफी बुरी तरह भय का वातावरण बन गया है! यह सब वैसे ज्योतिषियों के कारन है जो खानदानी तौर पर ज्योतिष को व्यवसाय बना कर लोगों का भयादोहन करते है! वस्तुतः कोई भी ग्रह कुंडली में भाव स्थिति के अनुसार ही फल देता है! स्वाभाविक पापी अथवा शुभ  जैसी बातें तो साधारण स्तर पर लोगों को समझाने के लिए ही कहा जाता है! मकर लग्न और कुम्भ लग्न के बारे में भी ऐसी ही धरना है! परन्तु बात ऐसी बिलकुल भी नहीं है! कई ऐसे योग है जो सिर्फ और सिर्फ इन्ही दो लग्नो में संभव है, किसी अन्य में नहीं ! मै उन सब के बारे में अभी कुछ नहीं कहकर मकर लग्न में शिअनी की दशा के बारे में ही अपना विचार व्यक्त करने जा रहा हूँ!

लग्न से रंग, रूप, स्वाभाव, जाती, कद, सर, आयु,रोग, यश, प्रतिष्ठा, धन, दिमाग, स्वास्थ्य,मस्तक,सफलता, व्यक्तित्व, पूर्व जन्म के बचे हुए कर्मो का फल आदि देखा जाता है!

द्वितीय भाव से धन, अचल संपत्ति, कुटुंब, मुख, भोजन , परिवार, वाणी, मारक, शासन-सत्ता, उच्च स्तरीय शिक्षा, सत्यासत्य, जीवन साथी का सुख, दम, खांसी, उपदेशक, मंत्र सिधि, श्राप, वक् सिध्धि आदि का विचार किया जाता है!

मकर लग्न में शनि की दशा के दौरान अशुभ फल की आशा नहीं करनी चाहिए! हाँ, यदि की स्थिति बहूत ही खराब हो (कुंडली में) तो शुभ फल में कमी अवस्य हो सकती है! इसी तरह यदि शनि कुंडली में राजयोग का निर्माण कर रहा हो तो अपनी दशा के दौरान अति श्रेष्ठ फल देगा! उदहारण के लिए मोहम्मद अली जिन्ना साहब का नाम लिया जा सकता है! जिन्होंने अपना लक्ष्य पा ही लिया! भारतीय सिनेमा के महानायक अमिताभ बच्चन जी को देखिये! शनि दशा के पूर्व अमिताभ जी की दशा यह थी की वे फ़िल्मी दुनिया को छोड़कर वापस जाने की सोचने लगे थे! शनि की दशा आते ही क्या से क्या हो गया यह पूरी दुनिया जान रही है!

शनि की दशा के दौरान जातक को चाहिए की अपनी योजना पर जी जान से जुट जाये! क्योंकि ऐसा शुभ समय दुबारा नहीं आएगा! लग्नेश तथा द्वितीयेश होकर शनि स्थिति और हैसियत के अनुसार सर्वोत्तम राजयोग के सामान सुख देता है! अतः उपरोक्त बातों से सम्बंधित शुभ फलों की प्राप्ति अवस्य  होता  है!

यह दशा धन और राज सुख को देने वाली होती है! खाक पति  भी लाख पति बन जाता है! तात्पर्य यह की धनागमन अवस्य होता है! कैसा भी मारक योग क्यों न चल रहा हो शनि की मूल दशा में निधन नहीं होता है! बड़े-बड़े व्यापर, उद्योग आरम्भ होते है! अचल धन का निर्माण होता है! कुटुंब, परिवार, सत्ता के लोग प्रसन्न रहते है! स्वयम शासन से लाभ उठाता है! समाज/राज्य/देश का अधिपत्य प्राप्त करता है! कई सिद्धियों को प्राप्त करता है! आत्म सिधि में लगे व्यक्तियों को विस्मयकारी अनुभूति होती है! जिस क्षेत्र में कार्य कर रहा होता है उसमे अद्भुत सफलता प्राप्त होती है! शत्रु को छिपने की जगह कम पद जाती है! यश, धन, मान, पद, प्रतिष्ठा, सफलता प्राप्त होती है!      

Sunday, January 2, 2011

मकर लग्न में गुरु की दशा/अन्तर्दशा

मकर लग्न में गुरु तृतीय और द्वादश भाव का स्वामी होता है! दोनों ही स्थान पापी होते है! खासकर दशा/अन्तर्दशा के दौरान इन दो भावों के अधिपति कभी भी शुभ फल नहीं देते! दशा चक्र नियम ग्रहों की शुभता/अशुभता से बिलकुल भिन्न है! कोई भी ग्रह कितना ही शुभ क्यों न हो यदि वह अशुभ भावों का स्वामी है तो दशा काल में अशुभ फल ही देगा! अशुभ फल उस भावानुसार होगा जिसका की वह स्वामी है! उदहारण स्वरुप गुरु ग्रह को लें! सौरमंडल में यह सर्वाधिक शुभ ग्रह है! इसकी शुभता का आलम यह है की नीच या अन्यान्य तरह से परम अशुभ क्यों न सिद्ध हो रहा हो इसकी दृष्टि हमेशा शुभ ही रहती है! परन्तु अधिपत्य की स्थिति के कारन यह कुछ मामलों में दशा/अन्तर्दशा के दौरान परम अशुभ फल देता है! मकर लग्न में अपनी दशा/अन्तर्दशा में कैसा फल देगा ?

तीसरे भाव से निज, नजदीकी व्यक्ति,बाजू,शक्ति,पराक्रम,छोटे भाई-बहन,मित्र,पडोसी,छोटी यात्रा,कन्धा,साँस की नली,मेहनत, दादी,चचेरा भाई,धैर्य,हिम्मत,निडरता,नौकर-चाकर,आयु,धर्म में दृढ़ता आदि का विचार किया जाता है!

द्वादश भाव से व्यय(अनावश्यक),शारीर हानि(मोक्ष),खर्च की अधिकता,जप,वीर्य विसर्जन,दाहिनानेत्र ,त्याग,मामी,पाँव,जेल,
नींद,भोग,बुआ,धार्मिक यात्रा,मानहानि,राजदंड,शयन सुख में कमी,आत्महत्या,गुप्त शत्रु,राजसम्मान आदि का विचार किया जाता है!

उपरोक्त सभी मामलों में गुरु का फल बुरा ही सिद्ध होगा! व्यवसाय में बदलाव या नए व्यवसाय धूमधाम से आरंभ होगा परन्तु आर्थिक लाभ कम और परेशानी ज्यादा होगी! अपमान के घूंट कई बार पीने पड़ेंगे! आमदनी से ज्यादा खर्च होने लगेंगे! संतोष की बात यह होगी की धन अति शुभ कार्यों में व्यय होंगे! कुछ सौदे तात्कालिक समयानुसार काफी अधिक महँगा लगेगा! परन्तु आगे चलकर वह सौदा जीवन की दशा और दिशा को बदल कर रख देगा! अग्यात भय बना रहेगा! पैसा पानी की तरह बहेगा पर लाभ उतना नहीं होगा!  गुरु की दशा आरम्भ होने से पूर्व  और गुरु की दशा में गुरु की ही अन्तर्दशा में जिसके लिए अपना सर्वस्व न्योच्छावर कर देंगे वही व्यक्ति (स्त्री/पुरुष) आपकी  नींव खोदेगा और आपका पतन देखकर खुश होगा! जीवन का वास्तविक स्वरुप का दर्शन होगा! आप अपने को अकेला पाएंगे! इतना कुछ होने के बावजूद भी जातक के  द्वारा कई परोपकारी कार्य पूर्ण होंगे! पूर्व काल में किये परोपकार कई बार ऐसी परिस्थितियों से निकाल लेगा की जातक को अचानक मिले शुभ फल का कारन समझ में नहीं आयेगा! अपने लोग ही अपमानित करेंगे! खून का रिश्तेदार ही सबसे ज्यादा तकलीफ देगा! कोई स्त्री मानसिक यंत्रणा का कारन बनेगी!

मकर लग्न में यदि गुरु की दशा चल रही हो तो जातक को चाहिए की अपना धैर्य बनाये रखे! अधीरता में लिए गए सारे  निर्णय गलत साबित होंगे! यह सबसे कठिन काल सिद्ध होता है! कई बार तो परिस्थिति इतनी विपरीत हो जाएगी की खुद पर संदेह होने लगेगा!नजदीकी से नजदीकी व्यक्ति भी साथ छोड़ जायेगा! खासकर दशा के अंत में जब राहू की अन्तर्दशा चलेगी तो भयावह परिणाम सामने आयेंगे! गुरु की सम्पूर्ण दशा दुखदायी ही साबित होगी! हाँ,यह अवश्य होगा की जब-जब शुभ ग्रहों की अन्तर्दशा आएगी तब-तब कुछ सुखद फल अवश्यमेव प्राप्त होंगे! सामान्यतया तीसरे और द्वादश भाव से सम्बंधित फल बुरे रूप में ही फलित होंगे! ऐसे समय में जातक को चाहिए की उन मित्रों पर भरोसा करे जिसके नाम का प्रथम अक्षर स, ग, द, म, र और क से आरम्भ होता है! मकर, कुम्भ,वृषभ और तुला लगनवाले व्यक्ति ही सच्चे  हितैषी सिद्ध होंगे! यह बात अनुभूत और पत्थर पर लकीर की तरह सिद्ध है! मकर लग्न के व्यक्ति के लिए शनि की दशा मनोरथ को सिद्ध करने वाली होती है! यही वह समय होता है जब व्यक्ति द्वारा फेंका गया पासा कभी उल्टा नहीं पड़ता! यदि शनि राजयोग का निर्माण कर रहा हो तो सफलता के शिखर पर पहुंचा कर दम लेती है! 

गुरु की दशा इतना अशुभ होते हुए भी कुछ मामलों में अद्भुत होता है! जातक को नए -नए के लोगों से सम्पर्क बनते है! दूर-दूर तक सम्बन्ध होने लगते है! धार्मिक कार्यों और गुप्त सिद्धियों में रूचि बढ़ने लगती है! सिद्ध पुरुषों के दर्शन होते है! यदि सूर्य या केतु से गुरु का कोई सम्बन्ध बन रहा हो तो जितने ग्रहों की दिष्टि गुरु पर पड़ती है उतनी बार दैवीय शक्ति से साक्षात्कार होने की संभावना प्रबल होती है!

उपाय:- (१)   गुरुवार को पिला/नीला वस्त्र धारण करें!
          (२)   ठाकुरजी के दार्शन गुरुवार को अवश्य करें!
          (३)   पीपल की लकड़ी से १०८ बार ॐ गूं गुरुवे नमः स्वाहा का उच्चारण करते हुए हवन करे! ध्यान रहे लकड़ी को गाय 
                  के घी में डुबोकर हवन कुंद में डालें!        


Saturday, January 1, 2011

ज्योतिष का रहस्य

प्यारे दोस्तों आज मै मेष लग्न में शनि की दशा/अन्तर्दशा के फलों के बारे में  चर्चा करूँगा! शनि मेष लग्न में दशम और एकादश भाव का स्वामी होता है! केंद्र स्थानों में दशम स्थान सर्वोत्तम होता है! कर्म का भाव यही है! एकादश भाव फल प्राप्ति का है! ज्योतिष शास्त्र में शनि ही एक मात्र ऐसा है जिसे लगातार दो राशियों का स्वामित्व प्राप्त है! शनि का दशम और एकादश भाव यानि कर्म और फल पर पूर्ण अधिकार है! यह अधिकार किसी अन्य को नहीं प्राप्त है! अतः कर्म के अनुसार फल देना शनि का प्रमुख कार्य है! इसीलिए सौरमंडल में शनि को न्यायाधीश का पद प्राप्त है! यह पद/स्थान उसे भगवान् शिव के द्वारा दिया गया है! शनि इस कार्य में कभी भी चूक नहीं करता है! यही कारन है की लोग शनि का नाम सुनते ही भयभीत हो जाते है! जबकि यह तो अपने कर्मो के अनुसार ही लोगो को दण्डित या पुरस्कृत करता है! एकादश भाव पापी भावो में सर्वाधिक पापी है! अतः एकादश भाव का स्वामी सर्वाधिक पापी होता है! इसी  कारन मेष लग्न में शनि पाप फल भी अवस्य करेगा भले ही वह रागयोग कारक ही क्यों न हो!

दसम भाव  से कर्म, पिता, व्यापार,सरकार,सम्मान,सरकारी नौकरी,पशुपालन,बड़े उद्योग,घुटना ,सास,राजदंड, उच्च पद,उच्चाधिकार,परतिष्ठा,उचाई,महत्वाकंछा की प्राप्ति,मंत्रिपद,नेत्रित्वाशक्ति आदि, देखा जाता है!

एकादश भाव से आय,लाभ,ठेकेदारी,दामाद,बहू,आभूषण,बड़ा भाई,बड़ी बहन,पुत्र-वधु,चोट,पिंडली,माता की आयु,द्वितीय जीवन-साथी,चाचा,चालू-खाता, आदि देखा जाता है!

मेष लग्न में शनि की दशा/अन्तर्दशा में दशम भाव से सम्बंधित अति श्रेष्ठ फल देगा! इस समय जातक का पूर्ण भाग्योदय अवस्य होता है! सफलता के शिखर को छूता है! कुंडली में शनि कितना भी पापी क्यों न हो दशम भाव से सम्बन्धी शुभ फल ही प्राप्त होंगे! दूसरी तरफ एकादश भाव से सम्बंधित फल निश्चित रूप से अशुभ रूप में प्राप्त होंगे, भले शनि कुंडली में कितना ही प्रबल क्यों न हो! हाँ! यदि शनि एकादश भाव में बैठा हो तो धन के मामले में अशुभ फल न देकर अति शुभ फल देगा!(यह सार्व भौम नियम है की एकादश भाव में स्थित गृह धन के मामले हमेशा शुभ फल ही देते है!)

नोट:- शनि अत्यंत परोपकारी है! यदि आप परोपकारी है तो शनि कभी भी आपको मायूस नहीं होने देगा! विपरीत परिस्थितियों   में से भी सकुशल और शानदार तरीके निकाल कर ही रहेगा! यह बात अनुभूत है और पत्थर पर लकीर की तरह सत्य है! यदि  परोपकारी नहीं है तो जीवन काल का सबसे बुरा दिन भी अवश्य दिखा देगा!    

उपाय:- (१)  शनिवार के दिन नीले रंग का वस्त्र धारण करें!
          (२)  परोपकार करें!
          (३)  शमी की लकड़ी से ॐ शं शनैश्चराय नमः स्वाहा का उच्चारण करते हुए १०८ बार (लकड़ी को गाय के घी में    डुबोकर)हवन शनिवार को करें!