Thursday, December 30, 2010

ज्योतिष की दृष्टि से सर्वोत्तम वैवाहिक मुहूर्त या समय

         मेरे दोस्तों मै आज आपको ज्योतिष के उन रहय्स्यों के बारे में बताना चाहता हूँ जिसे जानकर आप अपने बच्चों या अन्य संबधियों के दाम्पत्य  जीवन को धन्य बना सकते हैं! अथवा दाम्पत्य जीवन बर्बाद होने से बचा सकते हैं! अस्तु !

          हिन्दू धर्म शास्त्र के अनुसार षोडश संस्कार माने  गए हैं! (प्रारंभ गर्भाधान संस्कार से होता है!) विवाह संस्कार भी उनमे से एक है! गार्हस्थ जीवन में सबसे महत्वपूर्ण यही है! विवाह संस्कार ही वह धुरी है जिसके सहारे न केवल गार्हस्थ जीवन चलता है  बल्कि अगली पीढ़ी का भी उदगम यही से होता  है! अस्तु!

           प्रायः सारे जोतिषी विवाह मेलापक यानि गुण मिलान  के द्वरा ही विवाह निश्चित कर देते है और विवाह की तिथि शुभ दिन देखकर निश्चित कर देते है! विवाह का दिन निर्धारित कर वे निश्चिन्त कर देते अपने यजमान को! पान्तु, बात ऐसी नहीं है! गुण मिलान का अर्थ यह नहीं है की यदि ज्यादा गुण मिल रहे हों तो विवाहिक जीवन  उत्तम सिद्ध होगा! आप यदि थोदा सा ध्यान दे तो पाएंगे की कई लोग ऐसे है जिसके गुण २५-३० की संक्या में मिलते थे या है फिर भी उनका वैवाहिक जीवन कष्टमय और कितनों का तो मनो नरक ही बन गया! आप अपने जोतिषी या पंडित जी से पूच्चिये की ऐसा क्यों हुआ?

          मै आपको अपनी समझ से इसे स्पष्ट करने का प्रयास करूँगा! देखिये, गुण मिलान का अर्थ है स्वभाव या विचार या सोच का मेल! जैसे यदि किसी व्यक्ति का गुण १७ से कम मिल रहा हो तो इसका रथ यह लिया जाता है की शादी नहीं करनी  चाहिए क्योंकि गुण बहुत कम मिल रहे हैं!बात भी सही है! १७ गुण कुल गुणों
का आधा से भी कम है!आप सोचकर देखें की जिस दम्प्पत्ति के विचार आपस में ५०% से भी कम मिलते हो उनका जीवन कितना आनदमय होगा! यदि २७ गुण मिल रहें हो तो इसका अर्थ है की ७५% विचार आपस में मिल रहे हैं! जाहिर है इनका जीवन उस व्यक्ति से ज्यादा आनंदमय होगा जिसका २७ गुण मिल  रहे हैं! इसी तरह ३०,३२ या ३६ गुण मिलाने का मतलब उत्तम/सर्वोत्तम है! यानि इनमे आपस में इतना वैचारिक साम्यता रहेगी की शायद कभी किसी भी विषय पर वाद /विवाद ही न हो! जैसे की भगवन, प्रभु श्रीराम और माँ   सीता के आपसी विचार!            

            अब देखनेवाली  बात यह है की जिसके गुण ३० के आस पास की संख्या में मिल रहे थे उनका जीवन अच्छा क्यों नहीं गुजरा? मुहूर्त का महत्व यही से प्रारंभ होता है!मुहूर्त का अर्थ है वह सूक्ष्म से सूक्ष्म समय जिसके अंतर्गत कोई कार्य किया जाय  तो इच्छित कार्य पूर्ण हो जाये! यहाँ हम सिर्फ विवाह मुहूर्त के बारे में चर्चा करेंगे!

            २४ घंटे में १२ लग्न होते हैं! परन्तु सभी का मान बराबर नहीं होता है! कोई ९० मिनट का तो कोई १३७ मिनट का होता है!कोई इनके बिच का होता है! ज्योतिष शास्त्र में इस बात का स्पष्ट निर्देश है की मिथुन(३),कन्या(६),तुला(७)लग्न  का पूरा और धनु का पूर्वार्ध समय ही विवाह के लिए उत्तम बाकी नहीं!  अस्तु! उपरोक्त लग्नों में ही विवाह करना चाहिए! इस प्रकार लग्न का चुनाव नितांत आवश्यक है!

             विवाह कार्य के दौरान सुमंग्लिकरण/सिंदूरदान/कन्यादान का कार्य  सर्वाधिक महत्वपूर्ण है!यह वह समयावधि है जिसके दौरान सिंदूरदान  की रस्म की जाती है! यह अत्यंत अल्प अवधी है! करीब २ से ५ मिनट का! इसका निर्धारण करने के लिए जिस विधि का सहारा लिया जाता है उसका नाम है नवांश! ज्योतिष शास्त्र का स्पष्ट निर्देश है की सिंदूरदान जैसे शुभ कार्य मिथुन,कन्या,तुला,और धनु के नवांश में ही किये जाने चाहिए! यहाँ तक कहा गया है की सारे गुणों को अकेला नवांश दोष ही चौपट कर देता है! अस्तु! दाम्पत्य जीवन को खुशहाल बनाने के लिए इन्हीं नवांशों में सिंदूरदान आदि शुभ कार्य करने चाहिए!

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