Monday, June 13, 2011

Aryavarte magadhkshetre: Aryavarte magadhkshetre: जन्म कुंडली में द्वितीयेश...

Aryavarte magadhkshetre: Aryavarte magadhkshetre: जन्म कुंडली में द्वितीयेश...: "Aryavarte magadhkshetre: जन्म कुंडली में द्वितीयेश की महादशा!"

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Aryavarte magadhkshetre: Aryavarte magadhkshetre: मकर लग्न में चन्द्रमा की दशा

Aryavarte magadhkshetre: Aryavarte magadhkshetre: मकर लग्न में चन्द्रमा की दशा

Aryavarte magadhkshetre: जन्म कुंडली में द्वितीयेश की महादशा!

Aryavarte magadhkshetre: जन्म कुंडली में द्वितीयेश की महादशा!

जन्म कुंडली में द्वितीयेश की महादशा!

         महादशा के फलों की व्याख्या  में आज मै द्वितीयेश यानि द्वितीय भाव के स्वामी की महादशा के फलों की व्याख्या करूँगा! द्वितीय भाव सम माना जाता है! सम का अर्थ है न अच्छा न बुरा! इस भाव का स्वामी अपनी स्थिति के अनुसार फल देता है! यानी कुंडली में जहाँ वह स्थित है उसके अनुसार फल देता है! यदि ग्रह दो राशियों का स्वामी हो तो इस भाव का स्वामी अपनी दूसरी राशी (जिस भाव में उसकी दूसरी राशी पड़ती  हो!) के स्वामित्व के अनुसार फल देता है! यह सामान्य नियम है! परन्तु यह नियम ग्रहों के फल के वर्णन के लिए है! जैसे मान ले की मेष लग्न है, तो मेष लग्न में द्वितीय भाव का स्वामी शुक्र होगा! शुक्र की दूसरी राशी सप्तम भाव में पड़ती है! अब शुक्र सप्तम भाव के अनुसार फल देगा!  जीवन भर शुक्र का फल सप्तमेश के रूप में ही मिलेगा!

         महादशा का फल ग्रह के अनुसार नहीं प्राप्त होता है! दशा का फल भाव के अनुसार ही मिलता है! ग्रह अच्छे या बुरे हो सकते है! परन्तु भाव हमेशा एक सा रहता है! जैसे कोई ग्रह किसी लग्न के अच्छा है तो वही ग्रह दुसरे लग्न के बुरा हो सकता है! ग्रहों का अच्छा या बुरा होना स्थिति के अनुसार है न की भाव के अनुसार! यदि ग्रह स्वराशी,उच्च, मुल्त्रिकोनादी हो या क्षेत्र सम्बन्ध बना रहा हो तो अच्छा है और वह अच्छा फल देगा! अन्यथा बुरा फल देगा! यदि ग्रह अच्छा सिद्ध हो रहा हो तो यह जरुरी नहीं है की वह अपनी दशाकाल में अच्छा ही फल दे! यदि वह बुरे भाव का स्वामी है तो दशाकाल के दौरान बुरा फल ही देगा! उदहारण स्वरुप मेष लग्न में शुक्र यदि उच्चादी होकर शुभ सिद्ध हो रहा है तो वह व्यक्ति भूमि, भवन,वस्त्र, वाहन,पत्नी,भोग-विलाश,सांसारिक सुख, ऐश्वर्य आदि का शुभ फल ही देगा! परन्तु जब शुक्र की महादशा काल आरंभ होगी तो द्वितीय भाव सम्बन्धी अशुभ फल प्राप्त होने लगेंगे! अस्तु!
     
        दशा के दृष्टिकोण से द्वितीय भाव अशुभ गिना जाता है! इसका कारन यह है की द्वितीय भाव मारक भाव है! मारक भाव का मतलब है मृत्यु देनेवाला! अब मृत्यु से बढ़कर भला अशुभ और क्या हो सकता है! अतः द्वितीय भाव का स्वामी दशाकाल के दौरान अशुभ फल ही देगा! 

         द्वितीय भाव वाणी,कुटुंब,शासन,सत्ता,मंत्रिमंडल,उच्च शिक्षा,बंधन,परिवार,मुख,चेहरा,व्यक्तित्व,मारक, अचल संपदा,धन,संचित धन,चचेरा भाई/बहन,पत्नी की मृत्यु आदि का है! अब दशाकाल के दौरान द्वितीय भाव का स्वामी इन सभी मामलों में अशुभ फल ही देगा भले ही दशास्वामी शुभ ग्रह हो या अशुभ हो! इस भाव का स्वामी अपनी दशा में मृत्युतुल्य कष्ट देगा ! फल इस प्रकार होगा :- वाणी चिरचिरी हो जाएगी , परिवार और कुटुम्बियों से सम्बन्ध ख़राब हो जायेंगे, सत्ता में यदि हो तो सत्ताच्युत हो जायेंगे, शिक्षा में बाधा आयेगी, प्रतियोगिता में सफलता हाथ नहीं लगेगी, बंधन/जेल जाने की नौबत आ सकती है, भंयकर मानसिक वेदना होगी, सर में चोट/घाव हो सकता है, संचित धन खर्च होने लगेंगे, अचल संपदा संबंदी निर्णय बाद में गलत सिद्ध होंगे, चचेर भाई/बहन से विवाद होगा, पत्नी के कारन भरी कष्ट होगा या पत्नी को भरी कष्ट होग जिससे आप परेशां होंगे,मानहानी का भय सताता रहेगा, सगा से सगा भी (सहोदर) भी शत्रुवत व्यव्हार करने लगेगा, बदनामी होगी, कुल मिलकर द्वितीयेश की दशा जीवन की कठिन काल सिद्ध होगी! कोई भी उपाय कम नहीं करेगा! अस्तु!

         सलाह:- (१)   धैर्य धारण करे! यह आपके धैर्य की परीक्षा का समय है!

                      (२)   अपने हितैषियों की पहचान ही आपको उबार सकता है! जिन्होंने आपको पूर्व में मदद की 
                               है उनसे अपने संबधों को सुधारे!
                      
                       (३)   द्वितीयेश से सम्बन्धित लकरी से हवन नित्य प्रर्ति  करे!    


        नोट:-     द्वितीयेश  से संबधित रत्नों को धारण करना आ बैल मुझे मार वाली स्थिति पैदा करेगी! अतः रत्न            
                      धारण न करे!