Sunday, May 29, 2011

शेखर जी की कुंडली का सामान्य फलादेश !

प्रथम भाव  -  सूर्य लग्नेश होकर भाग्य भाव में उच्चस्थ है ! सर्वश्रेष्ठ फल देगा! पिता के प्रतिनिधि के रूप में गिना जाने के कारन पिता के द्वारा किये गए सुकर्मो का पूर्ण फल देगा! सूर्य अत्मकारक है नवं भाव पुन्य का, पूर्व जन्म का है अतः जातक द्वारा पूर्व  जन्म में किया गया कर्म पूर्ण रूप में मिलेगा! शनि कर्मो के अनुसार फल देता है ,नवम भाव पर दृष्टि के कारन आत्मा और परमात्मा के बीच का सम्बन्ध की गुथी को सुलझाने की ताकत रखता है! अतः यदि जातक परोपकार और कृतज्ञता को अपना ले तो प्रकृति के रहस्यों को सहज ही समझ सकता है! सूर्य राजा है, लग्नेश होकर अत्यंत बलि है! जाहिर है जातक अपने जीवन काल में प्रसिद्धी,सम्मान,यश,सफलता, महत्वाकांछा की पूर्ति जैसे फलों को भोगेगा! ५६वे वर्ष में आत्मसाक्षात्कार कर अपने इहलोक और परलोक को सुधार  लेगा इसमे तनिक भी संदेह नहीं है!  जातक को चाहिए की अपने पिता के स्नेही लोगों का आदर और सम्मान करे ,इनका अनादर पुन्य कर्मो को क्षय करके  jivan की सबसे महत्वपूर्ण इच्छा की पूर्ति में  बाधक बन जायेगा! राज्योग्कारक होने के कारन सूर्य जातक की हर इच्छा की पूर्ति करेगा! जातक को चाहिए की सूर्य षष्ठी व्रत अवस्य करे!

द्वितीय भाव- बुध द्वरा संचालित यह भाव  श्रेष्ठ है! बुध भाव में सूर्य के साथ होने के कारन बुधादित्य नमक राजयोग का निर्माण कर रहा है! यह भाव परिवार,कुटुम्बियों,शासन,उच्च शिक्षा,सम्मान , अचल धन सम्पदा का भी है! अतः इन सभी मामलों में बुध अति श्रेष्ठ फल देगा! इसका फल यह है की जातक के परिवार,कुटुंब में कोई न कोई उच्च शिक्षित,शासन  को प्रभाव्वित करनेवाला, अति धनि होगा और जातक को लाभ दिलाएगा! जातक स्वयं भी उच्च शिक्षा प्राप्त करेगा और महाधनी होगा! भाग्य का साथ इन सभी मामलों में प्राप्त होगा! चन्द्रमा की उपस्थिति भी इस भाव में है! चन्द्रमा हानि/व्यर्थ का खर्च/परेशानी भाव का स्वामी होकर शनि द्वारा दृष्ट है! अतः चन्द्रमा इन सभी मामलों में अशुभ फल देगा! चन्द्रमा मन का कारक है,इसके दायीं ओरशनि और बायीं ओर राहु है! दोनों ही राजयोग भंग करते है! शनि दुःख और परेशानी का कारक है! चन्द्रमा राहू से भयभीत रहता है! अतः जातक की मानसिक परेशानियों के लिए दोनों ही ग्रह महा अशुभ सिद्ध होंगे! चन्द्रमा शनि अधिष्ठित राशी का स्वामी होने के कारन दूषित हो रहा है, चन्द्रम माता का कारक है,यह इस बात का प्रमाण है की अपने जीवन काल में माता के कारन जातक को भयंकर मानसिक दुखों का सामना करना ही पड़ेगा ! शनि और राहू के मध्य और मंगल से दृष्ट होने कारन चन्द्रमा तीनों पापी ग्रहों द्वारा बुरी तरह प्रभावित हो रहा है! अतः कम से कम जीवन में तीन बार बेहद मानसिक तनाव झेलने ही होंगे!जातक को चाहिए की सोमवार को उजला वस्त्र  धारण करे और खीर का सेवन करे तथा शंकर भगवान् का ध्यान करे! 

तृतीय भाव- इस भाव का स्वामी दानवों के गुरु शुक्राचार्य है! जो उच्च के है, शुक्र पत्नी कारक ग्रह है! तीसरा भाव आत्मविश्वास का है अतः जातक प्रबल अत्मविस्वासी होगा, पत्नी का बल पाकर कई दुष्कर कार्य सहह्ज ही कर लेगा! शुक्र उच्च होकर होकर जहाँ एक ओर अद्भुत फल देगा वहीँ ashtam  भाव में शत्रु के साथ होने के कारन कई मुसीबतों का भी कारन बनेगा! इसका वर्णन अष्टम भाव में किया जायेगा! राहू की उपस्थिति उत्तम योग है! यह भाव राहू को अत्यंत प्रिय है,अतः जातक अत्यंत पराक्रमी,साहसी,निडर,अपने बहुबल पर भरोषा करनेवाला,विपरीत स्थितियों का डटकर मुकाबला करनेवाला होगा! खतरे मोल लेने की प्रवृति  होगी जो उसे नई उचाईयों पर पहूँचाकर ही दम लेगी! जातक को चाहिए की जब विकट परिस्थितियों का सामान हो तब गोमेद ६ रत्ती से ऊपर का धारण करे! राहू जातक को सरे सुखों का भोग कराने  में अकेला ही काफी है!     

चतुर्थ भाव-  इस भाव का स्वामी मगल है! शुक्र के साथ अष्टम भाव में है! मंगल नवमेश  भी है! अतः परम शुभ है! यह भाव भूमि,भवन,वाहन,वस्त्र,सभी प्रकार के सुख,सार्वजानिक जीवन का है! मंगल इन सभी मामलों में अद्भुत फल देगा! इस कुंडली मे मंगल से ज्यादा शुभ ग्रह कोई भी नहीं है! जाहिर है मगल जातक एक से अधिक भूमि,भवन इत्यादि अव्श्मेव  प्रदान करेगा! हाँ यह अवश्य है कि अपने शत्रु शुक्र के साथ होने के कारन सब कुछ  होते हुए भी उसका सुख नहीं के बराबर ही भोग पायेगा! कारन यह है कि शुक्र उच्च होने के कारन मंगल को अपने तरीके से चलने पर मजबूर कर देगा! शुक्र दैत्याचार्य है और मगल देवताओं  का सेनापति! दोनों कभी भी एक दुसरे कि नीतियों को पसंद नहीं करते है! जातक को चाहिए कि अपने हितैषियों/मित्रों कि पहचान करे और उनसे सलाह ले अन्यथा मंगल द्वारा प्रदान सुखों का फल क्षीण  हो जायेगा!

पंचम भाव - इस भाव का स्वामी गुरु है! गुरु स्वाभाविक शुभ ग्रह है! दशम भाव में होने के कारन अत्यंत शुभ फल प्रदान करा रहा है! पंचम भाव से शिक्षा,नौकरी,विद्या,संतान,मनोरंजन,पूजा,तंत्र-मन्त्र,जीजा,बुधि,मानसिक स्टार का है! इन सभी मामलों में गुरु अति शुभ फल प्रदान करेगा! कर्म भाव  में  बैठकर शुक्र के साथ क्षेत्र सम्बन्ध बना रहा है! यह सबसे uttam सम्बन्ध है! निसंदेह गुरु श्रेष्ट विद्या,बुधि,संतान,आदि उपरोक्त फल पर्दान करेगा! परन्तु शुक्र गुरु का शत्रु है! शुक्र पत्नी का कारक है और गुरु पुत्र का कारक है! अतः पुत्र प्राप्ति के पश्चात जातक का सम्बन्ध अपने परिवार और सम्बन्धियों  से अच्छा नहीं रह पायेगा, बुधि कलुषित  हो जाएगी! कारन यह है कि उच्च शुक्र कि पूर्ण दृष्टि परिवार और संबधियो से संबधित भाव पर है! मंगल के साथ युति भी है ! जातक को चाहिए कि शुक्रवार के दिन गुल्लर कि लकरी से ॐ शुं शुक्राय नमः स्वाहा का १०८ बार करे सुकर का दोष शांत हो जायेगा! पुत्र भाव का कारक और स्वामी गुरु का कर्म भाव में स्थित हों इस बात का प्रमाण है कि जातक का पुत्र अपने कर्मो से पर्सिधि को प्राप्त  करेगा! दशम  भव उचाई का है , अतः जातक का पुत्र अपने जीवन में उच्च स्तर को प्राप्त कैगा!  

षष्ट भाव-इस भाव का स्वामी शनि है! शनि दुःख और बाधा का कारक है ! यह भाव रोग, ऋण,शत्रुका है ! अतः  जातक को शत्रु से सामना करना ही पड़ेगा! नसों से सम्बंधित रोग होंगे,ऋण कि भी स्थिति आएगी! परन्तु शनि द्वारा इस भाव पर दृष्टि  के कारन जातक इन सभी मामलों से सकुशल बच निकलेगा! कोई उपाय कराने कि आवश्यकता  नहीं है!

सप्तम भाव- यह  भाव भी शनि द्वारा संचालित है! इस भाव का कारक शुक्र उच्चस्थ है! अतः उच्च स्तरीय पत्नी कि प्राप्ति के स्पष्ट प्रमाण है! शुक्र और मंगल कि युति ज्योतिष के एक रहस्य को दर्शाते है! वह यह है कि जब भी ये दोनों एक साथ होते है तो जातक अत्यंत कामी होता है! उसकी पत्नी उसे प्रेमी कि तरह प्यार करती है! वह स्वयम भी पत्नी को प्रेमिका  कि तरह प्यार करता है! पत्नी काम क्रीडाओं  के दौरान भरपूर साथ देती है! इस प्रकार इस मामले में जातक सौभाग्यशाली होता है! एक बात और जातक पत्नी के अतिरिक्त  एक से अधिक सुन्दर स्त्रियों का सानिध्य प्राप्त करता है और उनसे सुख प्राप्त करता है! ४८ वे वर्ष में इसी प्रकार  के संबंधों के कारन जातक को आशातीत धन लाभ होता है! शनि के कारन जातक दाम्पत्य शुख में बाधा आती है! जातक को पत्नी के कारन सुख तो प्राप्त  होता है परन्तु पत्नी सुख  नहीं होता है! शुक्र अपनी उच्च स्थिति के कारन भोग विलाश, विलाशिता सम्बन्धी वस्तुओं तथा भूमि,भवन,वाहन,वस्त्र अदि का लाभ अवास्य्मेव प्राप्त होगा परन्तु शनि द्वारा संचलित होने के कारन दाम्पत्य जीवन कि सफलता ५०% से अधिक नहीं हो पता है! जातक को चाहिए कि कृतग्य रहना सीखे और परोपकार करे  अन्यथा उच्च शुक्र का मृत्यु स्थान में शत्रु के साथ स्थित होना और शनि का मारकेश होना परम अशुभ स्थितियों का निर्माण करेगा!

अष्टम स्थान- इस भाव का स्वामी गुरु कर्म भाव में स्थित है! शुक्र इसी  भाव में उच्च है! दोनों ही स्थितिया शुभ है! जातक अपने श्रेष्ठ कर्मो के द्वारा mrityu  से पूर्व ही ख्याति को प्राप्त करेगा! मृत्यु के उपरांत उत्तम लोको को जायेगा! मोक्ष को प्राप्त करेगा ! नाश स्थान में शनि मारकेश होकर स्थित है अतः जातक इस शारीर के नाश के बाद दूसरा शारीर धारण नहीं  करेगा! कलियुग में इस प्रकार ग्रहों कि स्थिति ही इस बात को मानने पर विवश करता है कि पूर्व जन्मो के कर्मो का फल इस जन्म में प्राप्त होता है! जातक कि मृत्यु किसी  तीर्थ स्थान में गुरुवार को शुक्र कि होरा में होगी! यह मृत्यु स्थान है! शुक्र यहाँ एक और विशेष परिस्थितियों का निर्माण कर रहा है! तृतीय भाव के फल के दौरान इसे नहीं कहा गया था! शुक्र के कारन जातक बहूत सुख प्राप्त करेगा परन्तु शुक्र कि द्वितीय भाव पर शत्रु के साथ दृष्टि तथा शनि के परम मित्र होने के कारन (शनि कि भी दृष्टि द्वितीयभाव पर है) परिवार/ कुटुम्बियो के लिए दुखद है! द्वितीय भाव भी मारक भाव है ! शनि और मंगल कि दृष्ट में होने के कारन जातक का सम्बन्ध अपने परिवार और कुटुम्बियो के से विच्छेद हो जायेगा! यहाँ तक कि जातक स्वयं किसी परिवार /कुटुम्बियो कि मृर्यु का कारन बनेगा या किसी परिवार/कुटुम्बियो के द्वारा मृत्यु तुल्य कष्ट भोगेगा ! इसका कारन भी जातक कि पत्नी ही बनेगी!

नवम भाव- इस भाव का स्वामी मंगल है! मंगल कि शुभता बताई जा चुकी है! ग्रहों कि उपस्थिति के कारन यह भाव बहुत बलवान है! जातक अत्यंत भाग्यशाली है! उच्च का लग्नेश सूर्य, धनेश और अभेश बुध के साथ केतु कि उपस्थिति  दर्शनीय है! निश्चय ही जातक का भाग्य विलक्षण है! यह महाधनी,प्रतापी,यशस्वी,राजा के समान सुखों को भोगनेवाला, कुल का दीपक, पराक्रमी और पुण्यात्मा तथा परलोक में भी उत्तम लोको को प्राप्त करनेवाला होगा! शनि कि दशम दृष्टी में होने के कारन जातक का परोपकारी  होना इसमे चार चाँद लगाएगा!

दशम भाव- इस भाव का का स्वामी शुक्र उच्च   है!  गुरु इसी भाव में है! गुरु वर्गोत्तम है (लग्न और नवांश कुंडली में दशम भाव में है) ! अतः कर्म भाव होने के कारन अति शुभ है! यह भाव जातक के उत्तम कर्मो को दर्शाता है! चुकि जातक के कर्मो के बारे में कह चूका हु  अतः ज्यादा कहकर  अनावश्यक विस्तार नहीं देनबा चाहता !

एकादश भाव- इस भाव का स्वामी बुध भाग्य भाव में है! यह भाव लाभ,बड़े भाई/बहन,पुत्रबधू का है! अतः जातक बहूत लाभ प्राप्त करेगा! बड़े भाई/बहन भाग्य निर्माण और लाभ में सहायक सिद्ध होंगे! पुत्रवधू भी लाभ प्राप्ति में सहायक सिद्ध होगी! चुकि बुध   भाग्य भाव में  है ,अतः बड़े भाई/बहन के साथ संबंधो के द्वारा लाभ/हानि निर्धारित होगी! जातक मेरा सम्बन्धी है! इसलिए मै ज्यादा नहीं कहूँगा!

द्वादश भाव- इस भाव का स्वामी चंद्रमा  द्वितीय भाव में है ! चन्द्रमा का द्वितीयस्थ होना अति शुभ है! इससे द्वितीय भाव सम्बन्धी फल अति शुभ मिलेगा! परन्तु इस भाव का स्वामी होकर चन्द्रमा अच्छा फल नहीं देगा! व्यर्थ का खर्च,परेशानी,मुसीबत,मानसिक तनाव इत्यादि अशुभ फल प्राप्त होंगे!

दशाफल- सूर्य - अति श्रेष्ठ!
               चन्द्रमा- धन हानि,मानसिक चिंता, दुःख,अपनो से विरोध का फल देगा!

               मंगल-   उत्तम फल देगा! भूमि,भवन,वाहन अदि का लाभ कराएगा! भाग्य के बल पर सरे कार्य संपन्न कराएगा !       

                बुध-धन लाभ कराएगा !

                गुरु- संतान,नौकरी, धन,भिमी ,मनोरंज के लिए अति शुभ!परन्तु अचानक मुसीबत,परेशानी,स्वजन से विरोध,मानसिक यंत्रणा के लए अति अशुभ फल देगा!

                शुक्र- धनादि के लिए और सुकर्मो के लिए अति शुभ फल देगा ! परिवार/सम्बन्धियों के लिए अशुभफल देगा!

                राहू- श्रेष्ठ फल देगा

                केतु- श्रेष्ठ फल देगा!

                शनि -अशुभ फल देगा ! दुःख और बाधा का कारन बनेगा!