Monday, January 10, 2011

कुम्भ लग्न में गुरु की दशा!

कुम्भ लग्न को कई ज्योतिषी अच्छा नहीं मानते ! इसका कारन शनि द्वारा अधिष्ठित राशी का लग्न में होना  है! बात कुछ हद तक ठीक भी है ! शनि दुख और बाधा का कारक है ! इसीलिए मकर और कुम्भ लग्न के जातकों के जीवन में कई ऐसे अवसर आते है जब महादुख और संताप के कारन वह स्वयं को अकेला पाता है! ऐसी स्थिति भी जीवन में एक से अधिक बार आती है जब कोई भी उसकी बातों का विस्वास नहीं करता! उसके सगे सम्बन्धी उसे त्यागना ही अच्छा मानते है! जबकि वह एकदम पाक-साफ होता है ! जो व्यक्ति पाक-साफ हो फिर भी उसे दुत्कारा और अपमानित किया जाये, अछूत की तरह व्यवहार किया जाये, उसकी  क्या दशा होगी सहज ही अनुमान किया जा सकता है! उसका जीवन संघर्षों में ही गुजरता है! इतना सब होने के बावजूद कुम्भ लग्न के जातक अपने क्षेत्र में अनुपम होते है! जिस प्रकार स्वर्ण अग्नि में तपकर और भी देदीप्यामान हो उठता है ठीक उसी प्रकार कुम्भ लग्न के जातक संघर्षों और दुखों को में से निकलकर अपनी लक्ष्य को पा कर ही दम लेते है! उदहारण के तौर पर श्री रामकृष्ण परमहंस जी और मोहम्मद अली जिन्ना साहब का नाम लिया जा सकता है!

कुम्भ लग्न में गुरु दशा की अत्यंत दुखदायी होती है! जातक को इस दौरान भयकर बदनामी, अपयश, महा गरीबी, कर्ज में डूबना, सगे सम्बन्धी द्वारा धोखा, व्यापार में भयंकर हानि, मतिभ्रम आदि  सब दुःख और क्लेश भोगने ही पड़ते है! जिससे जातक बुरी तरह् व्यथित हो जाता है! यदि शनि अच्छे भाव या राशी में न हो तो उपरोक्त बातों का होना और भी निश्चित है!

हाँ! एक बात ये भी होती है की जातक इस दौरान नया व्यापार अवस्य आरंभ करता है! आर्थिक लाभ भले ही न हो परन्तु उसकी कीर्ति और व्यक्तित्व समाज में असाधारण रूप से बढ़ने लगता है! अपने भले त्याग करे लेकिन मित्रों और अधिकारीयों के साथ समाज में उसकी विस्वसनीयता  इतनी बढ़ जाती है की गुरु की दशा समाप्त  होते ही अर्थात शनि की दशा के दौरान जातक अपनी महत्वाकांक्षा पूरी कर लेता है!

उपाय:-  (१) पीले रंग या हलके आसमानी रंग के वस्त्र धारण करे!
           (२)  पुखराज ५ रत्ती का दाहिने हाथ की तर्जनी में गुरुवार को धारण करे !
           (३)  ॐ गूं गुरुवे  नमः स्वाहा का उच्चारण करते हुए पीपल की लकड़ी से गुरवार को १०८ बार हवन करे!

नोट:-   वैसे कोई उपाय ज्यादा फायदा नहीं पहुंचा सकता! अतः धैर्य धारण करते हुए परोपकारी  कार्य करते रहे!

Friday, January 7, 2011

मकर लग्न में चन्द्रमा की दशा

मकर लग्न में चन्द्रमा सप्तमेश होकर दांपत्य जीवन के लिए कई तरह से शुभ होता है! चन्द्रमा नक्षत्रों की रानी है! स्वयं ही लग्न की ताकत रखता है! यदि नीच, मकर राशी में या षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में स्थित न हो तो अकेला ही जातक के जीवन को धन्य कर देता है! उपरोक्त स्थितियों में यह अपनी दशा/अन्तर्दशा के दौरान उन परिस्थितियों का निर्माण करता है जिससे जातक को मानसिक पीड़ा होती है! जैसा सोचता है उसके ठीक विपरीत फल प्राप्त होता है! चन्द्रमा मन का कारक है! सुख दुःख की अनुभूति मन के द्वारा ही होती है! इसीलिए मानसिक कष्टों का कारन चन्द्रमा ही होता है!

 चन्द्रमा उपरोक्त स्थिति में अपनी दशा/अन्तर्दशा के दौरान ही मानसिक चिंताए देगा बाकि समय नहीं! मकर लग्न में चन्द्रमा लग्न में बैठकर सप्तम भाव को अति शुभ बना देता है! राजयोग का निर्माण करता है! केन्द्रेश होकर लग्न में होना इस बात का प्रमाण है की व्यक्ति का दाम्पत्य जीवन शानदार और सफल रहेगा ! ऐसे व्यक्ति प्रेम के मामले में भाग्यशाली होते है! मकर लग्न में प्रेमी/प्रेमिका भाव का स्वामी एक अन्य स्त्री ग्रह शुक्र बनता है! यदि शुक्र का सम्बन्ध किसी भी तरह से चन्द्रमा से हो जाये तो पत्नी के अतिरिक्त प्रेमिका भी अवस्य होती है! आश्चर्यजनक बात तो यह है की जातक पत्नी और प्रेमिका दोनों संबंधों को  बखूबी निभाता है! परन्तु पत्नी से सम्बन्ध चिरस्थायी ही रहता है! सप्तमेश चन्द्रमा भोग का निर्माण करता है! भोग बिना धन के नहीं होता! अतः धनागमन अवस्य करता है! व्यापर से लाभ उठाता है! ऐसा व्यवसाय जिसमे किसी स्त्री का सहयोग या पत्नी का सहयोग हो कभी विफल नहीं होता! जातक को चाहिए की बड़े-बड़े व्यापर पत्नी के नाम से ही करे! क्योंकि बड़े व्यापर का भाव भी एक स्त्री ग्रह शुक्र द्वारा ही प्रभावित है! शुक्र बड़ा ही सुन्दर ग्रह है! अतः व्यापारिक साझेदार कोई सुन्दर स्त्री होगी! पुरुष मित्रों के साथ भी व्यापर सफल होगा परन्तु कुछ कम ही होगा! इसमे धोखा की संभावना ज्यादा रहेगी ! यदि किसी को व्यापार के लिए पैसे देने हो तो बुधवार को कदपि न दे! इस दिन दिए गए पैसे बड़ी मुश्किल से लाभ दिला पाएंगे! पूंजी फंसने की संभावना रहेगी! साझेदारी के काम सफल होगा! शनि चर और स्थिर दोनों राशियों का स्वामी बनता है! चन्द्रमा स्वयं चर राशी (कर्क) का स्वामी है! अतः ऐसे कार्यों में जिसमे सामान की खपत जल्दी-जल्दी होता हो, व्यापार की दृष्टि से उत्तम साबित होता है! चन्द्रमा मारकेश होता है! परन्तु इसे मारक का दोष नहीं होता! चन्द्रमा माता है! माता कभी भी शिशु की मृत्यु नहीं चाहेगी! चन्द्रमा  की मूल दशा में निधन प्रायः नहीं होता है! स्पष्ट है जातक की आयु लम्बी होती है! यही नहि उसकी जवानी भी दीर्घ समय तक बरक़रार रहती है! जातक को चाहिए की ज़मीन, फैंसी वस्तुओं, भूमि/जल से उत्पन्न पदार्थों, उजली वस्तुओं, रस (तरल) आदि पदार्थों से संबधित व्यवसाय करे! लेन-देन अपने हाथों से न करके पत्नी के हाथों से करवाए! शनि अंधकार को पसन्द करता है! अतः व्यापार के सिलसिले में रात्रि में ही अपनी योजना बनाये! सूर्योदय से सूर्यास्त तक कोई भी योजना नहीं बनानी चाहिए! तात्पर्य यह की जब तक सूर्य उदित रहे अपनी योजना के बारे में किसी से चर्चा स्वयं न करे! चंद्रमा सोमवार का प्रतिनिधि है! अतः व्यापारिक कार्यारम्भ सोमवार के दिन ही करे!

विशेष:- शनि जब लग्नेश होकर जब  लग्न, पंचम और दशम भाव पर दृष्टि डाले या उसी में स्थित हो तो जातक को चाहिए की शिक्षण संसथान खोले या  बच्चों को मुफ्त में पुस्तक/पुस्तिका बांटे! इसका फल यह होगा की महाप्रयाण काल की बेला में भगवती की कृपा अवस्य होगी!

नोट:- पत्नी की प्रसन्नता ही सफलता की कुंजी साबित होगी! भतीजा/भतीजी के प्रसन्न रहने पर कई ऐसे कार्य बन जायेंग जिसे जातक असंभव समझता है! भतीजा/भतीजी को सोमवार के दिन उजला अन्न,वस्त्र,चाँदी आदि देना व्यापार और दाम्पत्य जीवन के लिए अति शुभ होता है! इससे निःसंतान को संतान और पुत्रहीन को पुत्र की प्राप्ति होती है!

उपाय:- (१)   सोमवार के दिन उजला वस्त्र पहने!
          (२)   चन्द्रमा की दशा/अन्तर्दशा/प्रत्य्न्तार्दशा के दौरान या ऐसे भी चाँदी का कड़ा दाहिने हाथ में धारण करे!
          (३)   पलाश की लकड़ी से १०८ बार ॐ सोम सोमाय नमः स्वाहा का उच्चारण करते हुए हवन करे!    

मकर लग्न में मंगल की दशा

मकर लग्न में मंगल चतुर्थ और एकादश भाव का स्वामी होता है! केन्द्रेश होकर अति शुभ हो जाता है परन्तु एकादशेश होकर कुछ अशुभ फल करता है! मंगल यदि स्थिति के अनुसार राजयोग का निर्माण कर रहा हो तो परम शुभ फल देता है! एकादश भाव का स्वामी होने से धन से सम्बंधित अत्यंत शुभ फल देता है ! अपनी दशा के दौरान जातक को धन सम्बन्धी चिंता नहीं करने देता है! यदि दशा मध्यायु में पड़ती है तो जातक को इतना धन देता है वह भूमि का क्रय अवस्य्मेव करता है! नौकरी करता है! धन की अधिकता के कारन अहंकारी बना देता है! यदि मध्यायु से पूर्व दशा आती है तो धन कमाने के नविन विचार/तरीके के बारे में कल्पना किया करता है! ऊँचे-ऊँचे ख्याल मन में आते रहते है! यदि मध्यायु  के बाद दशा आती है तो अपने पराक्रम से इतना धन अर्जित करता है की लोग आश्चर्य करते है! ऐसे में जातक को चाहिए की मंगल की दशा या अन्तर्दशा में ज़मीन की खरीद गुरुवार को ही करे!इसका लाभ यह होगा की पूंजी की फंसने की संभावना नहीं रहेगी! यदि पूंजी फंसती भी है तो गुरु या शनि दशा/अन्तर्दशा में कई गुना लाभ के साथ लौटा देता है! मकर लग्न में एकादश भाव से सम्बंधित बाकि सारे फल अशुभ ही होते है! बड़े/छोटे भाई से वैचारिक मतभेद होंगे! भाई प्रति द्वंद्वी की तरह व्यवहार करेंगे! कम बनाना तो दूर काम बिगड़ जाने पर खुश होंगे! पुत्र वधु को खून से सम्बंधित बीमारी होगी! बड़े भाई के लिए स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा समय नहीं रहेगा! ऑपरेशन की नौबत भी आ सकती है! यदि मंगल की दृष्टि एकादश भाव पर हो तो बहन के लिए अत्यंत दुखदायी होता है! जातक का खर्च आमदनी से कहीं ज्यादा हो जाता है! परन्तु आवास्यक्त्नुसार लाभ होता रहता है! जहाँ-जहाँ भी मंगल की दृष्टि पड़ेगी उसी भाव सम्बन्धी बातों में खर्च बढेगा! दामाद या जीजा के लिए भी अच्छा नहीं रहता है! चोट लगने की संभावना रहती है!घुटने से निचे पिंडली में दर्द होता है या चोट के निशान बन जाता है! ठेकेदारी में भी हाथ आजमाने की इच्छा जागृत होती है जो आगे चलकर दुसरे रूप में काम आता है! यदि मंगल स्वयं एकादश भाव में न बैठा हो तो मकर लग्न वालों को ठेकेदारी का कार्य नहीं करना चाहिए!

मंगल की दशा में चतुर्थ भाव से संबधित फल अति शुभ साबित होते है! जातक को भूमि, भवन, माकन, वस्त्र, वाहन, माता, सुख, ऐश्वर्य, सार्वजानिक कार्यों अभिरुचि, मित्र सुख, कृषि, जनता, ससुर आदि का भरपूर सुख होता है! इस दौरान मगल लग्नेश के सामान शुभ साबित होता है! अर्थात. चतुर्थ भाव  से संबधित सारे मामलों में मंगल परम शुभ साबित होता है! जातक को चाहिए यदि मंगल की दशा आरंभ होने वाली हो तो अपनी सारी शक्ति के साथ उपरोक्त फलों की प्राप्ति के लिए प्रयास  करे ! क्योंकि मंगल सेनापति है और वह भी देवताओं का! मंगल उत्तेजित करने वाला ग्रह है! युवावस्था का वह रूप है जो वह सारा काम अपने बाहुबल से प्राप्त कर लेने की योजना बनता है! कालपुरुष की बाहू और कंधे का बल है मंगल! मकर लग्नवालों को चाहिए की बड़ा-बड़ा कार्य या वैसा कार्य जिसे कर पाना हर किसी के लिए संभव न हो इसी समय आरम्भ करे! कैसा भी विपरीत समय क्यों न चल रहा हो इस समय जातक के पराक्रम का अहसास लोगों को होने लगता है! किसी न किसी बात के लिए उसे प्रसिद्धी प्राप्त होने लगती है! उसकी प्रतिभा रंग दिखाने लगती है! इस समय देखे गए ख्वाब पुरे होते है! मंगल के बलानुसार शुभ फल अवस्य प्राप्त होते है!

उपाय :- (१)   मंगलवार के दिन गहरा खुनी लाल रंग का वस्त्र धारण करे!
           (२)   चिरचिरी की लकरी से मंगलवार की सुबह १०८ बार ॐ भौम भौमाय नमः स्वाहा का जप करते हुए भगवन विष्णु        
                  की तस्वीर सामने रखकर हवन करे!       
           (३)   ताम्बे का कड़ा मंगल वार को सूर्योदय के समय धारण करे!  
                             

Wednesday, January 5, 2011

मकर लग्न और शनि दशा

मकर लग्न में शनि लग्नेश और द्वितीयेश होता है ! ज्योतिषियों में शनि को लेकर  काफी भ्रम है! यही कारन है की आम लोगों में भी शनि को लेकर काफी बुरी तरह भय का वातावरण बन गया है! यह सब वैसे ज्योतिषियों के कारन है जो खानदानी तौर पर ज्योतिष को व्यवसाय बना कर लोगों का भयादोहन करते है! वस्तुतः कोई भी ग्रह कुंडली में भाव स्थिति के अनुसार ही फल देता है! स्वाभाविक पापी अथवा शुभ  जैसी बातें तो साधारण स्तर पर लोगों को समझाने के लिए ही कहा जाता है! मकर लग्न और कुम्भ लग्न के बारे में भी ऐसी ही धरना है! परन्तु बात ऐसी बिलकुल भी नहीं है! कई ऐसे योग है जो सिर्फ और सिर्फ इन्ही दो लग्नो में संभव है, किसी अन्य में नहीं ! मै उन सब के बारे में अभी कुछ नहीं कहकर मकर लग्न में शिअनी की दशा के बारे में ही अपना विचार व्यक्त करने जा रहा हूँ!

लग्न से रंग, रूप, स्वाभाव, जाती, कद, सर, आयु,रोग, यश, प्रतिष्ठा, धन, दिमाग, स्वास्थ्य,मस्तक,सफलता, व्यक्तित्व, पूर्व जन्म के बचे हुए कर्मो का फल आदि देखा जाता है!

द्वितीय भाव से धन, अचल संपत्ति, कुटुंब, मुख, भोजन , परिवार, वाणी, मारक, शासन-सत्ता, उच्च स्तरीय शिक्षा, सत्यासत्य, जीवन साथी का सुख, दम, खांसी, उपदेशक, मंत्र सिधि, श्राप, वक् सिध्धि आदि का विचार किया जाता है!

मकर लग्न में शनि की दशा के दौरान अशुभ फल की आशा नहीं करनी चाहिए! हाँ, यदि की स्थिति बहूत ही खराब हो (कुंडली में) तो शुभ फल में कमी अवस्य हो सकती है! इसी तरह यदि शनि कुंडली में राजयोग का निर्माण कर रहा हो तो अपनी दशा के दौरान अति श्रेष्ठ फल देगा! उदहारण के लिए मोहम्मद अली जिन्ना साहब का नाम लिया जा सकता है! जिन्होंने अपना लक्ष्य पा ही लिया! भारतीय सिनेमा के महानायक अमिताभ बच्चन जी को देखिये! शनि दशा के पूर्व अमिताभ जी की दशा यह थी की वे फ़िल्मी दुनिया को छोड़कर वापस जाने की सोचने लगे थे! शनि की दशा आते ही क्या से क्या हो गया यह पूरी दुनिया जान रही है!

शनि की दशा के दौरान जातक को चाहिए की अपनी योजना पर जी जान से जुट जाये! क्योंकि ऐसा शुभ समय दुबारा नहीं आएगा! लग्नेश तथा द्वितीयेश होकर शनि स्थिति और हैसियत के अनुसार सर्वोत्तम राजयोग के सामान सुख देता है! अतः उपरोक्त बातों से सम्बंधित शुभ फलों की प्राप्ति अवस्य  होता  है!

यह दशा धन और राज सुख को देने वाली होती है! खाक पति  भी लाख पति बन जाता है! तात्पर्य यह की धनागमन अवस्य होता है! कैसा भी मारक योग क्यों न चल रहा हो शनि की मूल दशा में निधन नहीं होता है! बड़े-बड़े व्यापर, उद्योग आरम्भ होते है! अचल धन का निर्माण होता है! कुटुंब, परिवार, सत्ता के लोग प्रसन्न रहते है! स्वयम शासन से लाभ उठाता है! समाज/राज्य/देश का अधिपत्य प्राप्त करता है! कई सिद्धियों को प्राप्त करता है! आत्म सिधि में लगे व्यक्तियों को विस्मयकारी अनुभूति होती है! जिस क्षेत्र में कार्य कर रहा होता है उसमे अद्भुत सफलता प्राप्त होती है! शत्रु को छिपने की जगह कम पद जाती है! यश, धन, मान, पद, प्रतिष्ठा, सफलता प्राप्त होती है!    

मकर लग्न और शनि दशा

मकर लग्न में शनि लग्नेश और द्वितीयेश होता है ! ज्योतिषियों में शनि को लेकर  काफी भ्रम है! यही कारन है की आम लोगों में भी शनि को लेकर काफी बुरी तरह भय का वातावरण बन गया है! यह सब वैसे ज्योतिषियों के कारन है जो खानदानी तौर पर ज्योतिष को व्यवसाय बना कर लोगों का भयादोहन करते है! वस्तुतः कोई भी ग्रह कुंडली में भाव स्थिति के अनुसार ही फल देता है! स्वाभाविक पापी अथवा शुभ  जैसी बातें तो साधारण स्तर पर लोगों को समझाने के लिए ही कहा जाता है! मकर लग्न और कुम्भ लग्न के बारे में भी ऐसी ही धरना है! परन्तु बात ऐसी बिलकुल भी नहीं है! कई ऐसे योग है जो सिर्फ और सिर्फ इन्ही दो लग्नो में संभव है, किसी अन्य में नहीं ! मै उन सब के बारे में अभी कुछ नहीं कहकर मकर लग्न में शिअनी की दशा के बारे में ही अपना विचार व्यक्त करने जा रहा हूँ!

लग्न से रंग, रूप, स्वाभाव, जाती, कद, सर, आयु,रोग, यश, प्रतिष्ठा, धन, दिमाग, स्वास्थ्य,मस्तक,सफलता, व्यक्तित्व, पूर्व जन्म के बचे हुए कर्मो का फल आदि देखा जाता है!

द्वितीय भाव से धन, अचल संपत्ति, कुटुंब, मुख, भोजन , परिवार, वाणी, मारक, शासन-सत्ता, उच्च स्तरीय शिक्षा, सत्यासत्य, जीवन साथी का सुख, दम, खांसी, उपदेशक, मंत्र सिधि, श्राप, वक् सिध्धि आदि का विचार किया जाता है!

मकर लग्न में शनि की दशा के दौरान अशुभ फल की आशा नहीं करनी चाहिए! हाँ, यदि की स्थिति बहूत ही खराब हो (कुंडली में) तो शुभ फल में कमी अवस्य हो सकती है! इसी तरह यदि शनि कुंडली में राजयोग का निर्माण कर रहा हो तो अपनी दशा के दौरान अति श्रेष्ठ फल देगा! उदहारण के लिए मोहम्मद अली जिन्ना साहब का नाम लिया जा सकता है! जिन्होंने अपना लक्ष्य पा ही लिया! भारतीय सिनेमा के महानायक अमिताभ बच्चन जी को देखिये! शनि दशा के पूर्व अमिताभ जी की दशा यह थी की वे फ़िल्मी दुनिया को छोड़कर वापस जाने की सोचने लगे थे! शनि की दशा आते ही क्या से क्या हो गया यह पूरी दुनिया जान रही है!

शनि की दशा के दौरान जातक को चाहिए की अपनी योजना पर जी जान से जुट जाये! क्योंकि ऐसा शुभ समय दुबारा नहीं आएगा! लग्नेश तथा द्वितीयेश होकर शनि स्थिति और हैसियत के अनुसार सर्वोत्तम राजयोग के सामान सुख देता है! अतः उपरोक्त बातों से सम्बंधित शुभ फलों की प्राप्ति अवस्य  होता  है!

यह दशा धन और राज सुख को देने वाली होती है! खाक पति  भी लाख पति बन जाता है! तात्पर्य यह की धनागमन अवस्य होता है! कैसा भी मारक योग क्यों न चल रहा हो शनि की मूल दशा में निधन नहीं होता है! बड़े-बड़े व्यापर, उद्योग आरम्भ होते है! अचल धन का निर्माण होता है! कुटुंब, परिवार, सत्ता के लोग प्रसन्न रहते है! स्वयम शासन से लाभ उठाता है! समाज/राज्य/देश का अधिपत्य प्राप्त करता है! कई सिद्धियों को प्राप्त करता है! आत्म सिधि में लगे व्यक्तियों को विस्मयकारी अनुभूति होती है! जिस क्षेत्र में कार्य कर रहा होता है उसमे अद्भुत सफलता प्राप्त होती है! शत्रु को छिपने की जगह कम पद जाती है! यश, धन, मान, पद, प्रतिष्ठा, सफलता प्राप्त होती है!      

Sunday, January 2, 2011

मकर लग्न में गुरु की दशा/अन्तर्दशा

मकर लग्न में गुरु तृतीय और द्वादश भाव का स्वामी होता है! दोनों ही स्थान पापी होते है! खासकर दशा/अन्तर्दशा के दौरान इन दो भावों के अधिपति कभी भी शुभ फल नहीं देते! दशा चक्र नियम ग्रहों की शुभता/अशुभता से बिलकुल भिन्न है! कोई भी ग्रह कितना ही शुभ क्यों न हो यदि वह अशुभ भावों का स्वामी है तो दशा काल में अशुभ फल ही देगा! अशुभ फल उस भावानुसार होगा जिसका की वह स्वामी है! उदहारण स्वरुप गुरु ग्रह को लें! सौरमंडल में यह सर्वाधिक शुभ ग्रह है! इसकी शुभता का आलम यह है की नीच या अन्यान्य तरह से परम अशुभ क्यों न सिद्ध हो रहा हो इसकी दृष्टि हमेशा शुभ ही रहती है! परन्तु अधिपत्य की स्थिति के कारन यह कुछ मामलों में दशा/अन्तर्दशा के दौरान परम अशुभ फल देता है! मकर लग्न में अपनी दशा/अन्तर्दशा में कैसा फल देगा ?

तीसरे भाव से निज, नजदीकी व्यक्ति,बाजू,शक्ति,पराक्रम,छोटे भाई-बहन,मित्र,पडोसी,छोटी यात्रा,कन्धा,साँस की नली,मेहनत, दादी,चचेरा भाई,धैर्य,हिम्मत,निडरता,नौकर-चाकर,आयु,धर्म में दृढ़ता आदि का विचार किया जाता है!

द्वादश भाव से व्यय(अनावश्यक),शारीर हानि(मोक्ष),खर्च की अधिकता,जप,वीर्य विसर्जन,दाहिनानेत्र ,त्याग,मामी,पाँव,जेल,
नींद,भोग,बुआ,धार्मिक यात्रा,मानहानि,राजदंड,शयन सुख में कमी,आत्महत्या,गुप्त शत्रु,राजसम्मान आदि का विचार किया जाता है!

उपरोक्त सभी मामलों में गुरु का फल बुरा ही सिद्ध होगा! व्यवसाय में बदलाव या नए व्यवसाय धूमधाम से आरंभ होगा परन्तु आर्थिक लाभ कम और परेशानी ज्यादा होगी! अपमान के घूंट कई बार पीने पड़ेंगे! आमदनी से ज्यादा खर्च होने लगेंगे! संतोष की बात यह होगी की धन अति शुभ कार्यों में व्यय होंगे! कुछ सौदे तात्कालिक समयानुसार काफी अधिक महँगा लगेगा! परन्तु आगे चलकर वह सौदा जीवन की दशा और दिशा को बदल कर रख देगा! अग्यात भय बना रहेगा! पैसा पानी की तरह बहेगा पर लाभ उतना नहीं होगा!  गुरु की दशा आरम्भ होने से पूर्व  और गुरु की दशा में गुरु की ही अन्तर्दशा में जिसके लिए अपना सर्वस्व न्योच्छावर कर देंगे वही व्यक्ति (स्त्री/पुरुष) आपकी  नींव खोदेगा और आपका पतन देखकर खुश होगा! जीवन का वास्तविक स्वरुप का दर्शन होगा! आप अपने को अकेला पाएंगे! इतना कुछ होने के बावजूद भी जातक के  द्वारा कई परोपकारी कार्य पूर्ण होंगे! पूर्व काल में किये परोपकार कई बार ऐसी परिस्थितियों से निकाल लेगा की जातक को अचानक मिले शुभ फल का कारन समझ में नहीं आयेगा! अपने लोग ही अपमानित करेंगे! खून का रिश्तेदार ही सबसे ज्यादा तकलीफ देगा! कोई स्त्री मानसिक यंत्रणा का कारन बनेगी!

मकर लग्न में यदि गुरु की दशा चल रही हो तो जातक को चाहिए की अपना धैर्य बनाये रखे! अधीरता में लिए गए सारे  निर्णय गलत साबित होंगे! यह सबसे कठिन काल सिद्ध होता है! कई बार तो परिस्थिति इतनी विपरीत हो जाएगी की खुद पर संदेह होने लगेगा!नजदीकी से नजदीकी व्यक्ति भी साथ छोड़ जायेगा! खासकर दशा के अंत में जब राहू की अन्तर्दशा चलेगी तो भयावह परिणाम सामने आयेंगे! गुरु की सम्पूर्ण दशा दुखदायी ही साबित होगी! हाँ,यह अवश्य होगा की जब-जब शुभ ग्रहों की अन्तर्दशा आएगी तब-तब कुछ सुखद फल अवश्यमेव प्राप्त होंगे! सामान्यतया तीसरे और द्वादश भाव से सम्बंधित फल बुरे रूप में ही फलित होंगे! ऐसे समय में जातक को चाहिए की उन मित्रों पर भरोसा करे जिसके नाम का प्रथम अक्षर स, ग, द, म, र और क से आरम्भ होता है! मकर, कुम्भ,वृषभ और तुला लगनवाले व्यक्ति ही सच्चे  हितैषी सिद्ध होंगे! यह बात अनुभूत और पत्थर पर लकीर की तरह सिद्ध है! मकर लग्न के व्यक्ति के लिए शनि की दशा मनोरथ को सिद्ध करने वाली होती है! यही वह समय होता है जब व्यक्ति द्वारा फेंका गया पासा कभी उल्टा नहीं पड़ता! यदि शनि राजयोग का निर्माण कर रहा हो तो सफलता के शिखर पर पहुंचा कर दम लेती है! 

गुरु की दशा इतना अशुभ होते हुए भी कुछ मामलों में अद्भुत होता है! जातक को नए -नए के लोगों से सम्पर्क बनते है! दूर-दूर तक सम्बन्ध होने लगते है! धार्मिक कार्यों और गुप्त सिद्धियों में रूचि बढ़ने लगती है! सिद्ध पुरुषों के दर्शन होते है! यदि सूर्य या केतु से गुरु का कोई सम्बन्ध बन रहा हो तो जितने ग्रहों की दिष्टि गुरु पर पड़ती है उतनी बार दैवीय शक्ति से साक्षात्कार होने की संभावना प्रबल होती है!

उपाय:- (१)   गुरुवार को पिला/नीला वस्त्र धारण करें!
          (२)   ठाकुरजी के दार्शन गुरुवार को अवश्य करें!
          (३)   पीपल की लकड़ी से १०८ बार ॐ गूं गुरुवे नमः स्वाहा का उच्चारण करते हुए हवन करे! ध्यान रहे लकड़ी को गाय 
                  के घी में डुबोकर हवन कुंद में डालें!        


Saturday, January 1, 2011

ज्योतिष का रहस्य

प्यारे दोस्तों आज मै मेष लग्न में शनि की दशा/अन्तर्दशा के फलों के बारे में  चर्चा करूँगा! शनि मेष लग्न में दशम और एकादश भाव का स्वामी होता है! केंद्र स्थानों में दशम स्थान सर्वोत्तम होता है! कर्म का भाव यही है! एकादश भाव फल प्राप्ति का है! ज्योतिष शास्त्र में शनि ही एक मात्र ऐसा है जिसे लगातार दो राशियों का स्वामित्व प्राप्त है! शनि का दशम और एकादश भाव यानि कर्म और फल पर पूर्ण अधिकार है! यह अधिकार किसी अन्य को नहीं प्राप्त है! अतः कर्म के अनुसार फल देना शनि का प्रमुख कार्य है! इसीलिए सौरमंडल में शनि को न्यायाधीश का पद प्राप्त है! यह पद/स्थान उसे भगवान् शिव के द्वारा दिया गया है! शनि इस कार्य में कभी भी चूक नहीं करता है! यही कारन है की लोग शनि का नाम सुनते ही भयभीत हो जाते है! जबकि यह तो अपने कर्मो के अनुसार ही लोगो को दण्डित या पुरस्कृत करता है! एकादश भाव पापी भावो में सर्वाधिक पापी है! अतः एकादश भाव का स्वामी सर्वाधिक पापी होता है! इसी  कारन मेष लग्न में शनि पाप फल भी अवस्य करेगा भले ही वह रागयोग कारक ही क्यों न हो!

दसम भाव  से कर्म, पिता, व्यापार,सरकार,सम्मान,सरकारी नौकरी,पशुपालन,बड़े उद्योग,घुटना ,सास,राजदंड, उच्च पद,उच्चाधिकार,परतिष्ठा,उचाई,महत्वाकंछा की प्राप्ति,मंत्रिपद,नेत्रित्वाशक्ति आदि, देखा जाता है!

एकादश भाव से आय,लाभ,ठेकेदारी,दामाद,बहू,आभूषण,बड़ा भाई,बड़ी बहन,पुत्र-वधु,चोट,पिंडली,माता की आयु,द्वितीय जीवन-साथी,चाचा,चालू-खाता, आदि देखा जाता है!

मेष लग्न में शनि की दशा/अन्तर्दशा में दशम भाव से सम्बंधित अति श्रेष्ठ फल देगा! इस समय जातक का पूर्ण भाग्योदय अवस्य होता है! सफलता के शिखर को छूता है! कुंडली में शनि कितना भी पापी क्यों न हो दशम भाव से सम्बन्धी शुभ फल ही प्राप्त होंगे! दूसरी तरफ एकादश भाव से सम्बंधित फल निश्चित रूप से अशुभ रूप में प्राप्त होंगे, भले शनि कुंडली में कितना ही प्रबल क्यों न हो! हाँ! यदि शनि एकादश भाव में बैठा हो तो धन के मामले में अशुभ फल न देकर अति शुभ फल देगा!(यह सार्व भौम नियम है की एकादश भाव में स्थित गृह धन के मामले हमेशा शुभ फल ही देते है!)

नोट:- शनि अत्यंत परोपकारी है! यदि आप परोपकारी है तो शनि कभी भी आपको मायूस नहीं होने देगा! विपरीत परिस्थितियों   में से भी सकुशल और शानदार तरीके निकाल कर ही रहेगा! यह बात अनुभूत है और पत्थर पर लकीर की तरह सत्य है! यदि  परोपकारी नहीं है तो जीवन काल का सबसे बुरा दिन भी अवश्य दिखा देगा!    

उपाय:- (१)  शनिवार के दिन नीले रंग का वस्त्र धारण करें!
          (२)  परोपकार करें!
          (३)  शमी की लकड़ी से ॐ शं शनैश्चराय नमः स्वाहा का उच्चारण करते हुए १०८ बार (लकड़ी को गाय के घी में    डुबोकर)हवन शनिवार को करें!